जय गणेश भगवान की


                                                BOOK 1

       

 

 THE UNKNOWN TEMPLE IN DEEP VALLEY





 



                                                                     


 

 

 

                                                                            - BY AKASH SINGH RAJPOOT



आप सभी का मेरे ब्लॉग मे स्वागत है यहाँ आपको पढने के लिए कहानियां , लेख, ज्ञान की बाते व अन्य मुददो पर विचार मिलेगें

 कहानियां भी अपने आप में अदभुद होती है छोटी-बड़ी, अच्छी-बुरी, सच्ची या विचारो से जन्मी, हमारी आज की कहानी विचारो से जन्मी है उम्मीद करता हुँ कि् आपको यह पसंद आयेगी।


                CHAPTERS



1 THE ANCEINT TEMPLE

2 THE FRIENDSHIP

3  ACCEPTANCE IN the APPlE GARDEN

4  THE PREPARATION

5 THE DARK FOREST

6  THE TEMPLE

7 RULE OF SUVATRA




                                                                            

                   CHAPTER 1

                                              

            THE ANCEINT TEMPLE



      मन्दिर कई तरह के होते है कुछ पूजन हेतु होते है तो कुछ पूजन हेतु वर्जित, कुछ समाज मे प्रत्यक्ष होते है तो कुछ छुपे, कुछ मन्दिर इस काल के होते है तो कुछ किसी दुसरे ही काल के, आज हमारी कहानी ऐसे ही मन्दिर की है जो किसी और ही काल का था जिसको समय के साथ भूला दिया गया जिसपर अब केवल पेड़ो की लाताए-सूखे पत्ते व एकातं ही दिखता है यह मन्दिर पश्चिम बंगाल की एक धाटी मे है जहाँ अब रोशनी भी अपना रास्ता भटक जाती है जहाँ उन जीवो ने अपना धर बना लिया है जो अन्धेरो मे जीते है

                                           इस मन्दिर के बारे मे कोई नही जानता, हाँ कुछ खोजकर्ता इस तक पहुँचे व अध्ययन कर अपनी पुस्तको मे इसके बारे मे लिखा लेक्नि वो किताबे ज्यादा पढी नही गयी लेक्नि कुछ लोगो ने पढा व आकर्षित हुए ऐसी ही एक पुस्तक देहरादून मे रहने वाली एक लड़की ने पढी उस लड़की का नाम आसषरी सिहं था वह बचपन से ही तेजवान थी व हर समय कुछ खोजती रहती थी मानो उसे अन्दर से ईच्छा जग रही हो कि् कोई चीज मेरा इंतजार कर रही थी वह देखने मे जितनी सुन्दर थी उतनी ही गुणवान भी थी वह देवी आदि पराशक्ति की भक्त थी व रोजाना पूजन करती थी और बाद मे ही दैनिक जीवन का आरम्भ करती थी वह देहरादून के लिटिल बर्ड स्कूल मे पढती थी वह ग्यारहवी कक्षा मे थी वैसे तो वह सभी से बोलती थी लेक्नि उसके सबसे अच्छे आठ दोस्त थे जो उसी की कलास मे थे उन सभी मे कोई न कोई कला थी जिसमे वह माहिर थे     आप यह स्टोरी  SHRI DURGA DEVI ब्लॉग पर पढ रहे है
                          आरीका सिंह उसे धनुष चलाना पसंद था वह कई बार स्कूल को मेडल दिलवा चुकी थी सावरी सिहं वह मैप मे अत्यन्त दिलचस्पी रखती थी वह पुराने लेखो आदि का अच्छा अनुवाद कर लेती थी दुरमेश्वर देशमुख   तलवार बाजी मे माहिर था उपेन्द्र सिंह  रेसलर था व कई बार स्कूल के लिए रेसलिगं मे पदक जीत कर लाया था ऐशवर्य शर्मा कम्पयूटर चलाने मे माहिर था व एक हैकर भी था कोई फायर बाल नही थी जिसे ये तोड़ न पाये, उसने कम आयु मे काफी ज्यादा ज्ञान ले लिया था, टाकष शर्मा गन चलाने मे महिर था उसका निशाना कभी चूकता नही था, वारकी यादव कार रेसि्ांग करता था कोई ऐसी कार नही थी जिसे यह समझा न हो और सुवेन्द्र सिंह चौहान दिमाग का तेज था कई बार स्कूल टॉपर रह चूका था यह प्लेनिंग बहुत अच्छी करता था

           ये नौ दोस्त कभी नही लड़ते थे और हमेशा साथ रहते थे एक दिन आसषरी स्कूल की लाइब्रेरी मे धूम रही थी वह किताबो को देख रही थी धूमते-धूमते उसे एक शेल्फ मिलती है उसमे जाले लगे होते है वहाँ पुरानी किताबे रखी थी उसमे मकड़ियो के जाले लगे थे वहाँ बच्चो का आना मना था आसषरी शेल्फ से किताबे निकाल कर देखना शुरू करती है उसमे उसे कई किताबे मिलती है कुछ ऐसी किताबे थी जो पुराने बच्चो की थी उनमे बच्चो के नोटस बने थे आसषरी नोटस पढती है उनमे नोटस थे -

 

 

 


 

 

 

 

 

NOW I AM FREE BEACOUSE I CLEARED MY EXAMS - 1994

 

 

I AM VERY DISSAPOINTED WITH MY LOVER - 1991

 

THIS IS THE IMPORTANT NOTE OF CHANVI MAM 1995

 

 

ऐसे कई नोटस उन किताबो मे रखे थे तभी आसषरी की नजर पीछे रखी किताब पर पड़ती है वह किताब न स्कूल की थी न ही स्लेबस की, वो पता नही स्कूल मे कर क्या रही थी ? आसषरी उसे निकाल धूल साफ करती है उस बुक पर लिखा था -

 

 

       THE SECRETS OF UNKNOWN TEMPLE

 

 

आसषरी बुक खोल देखती है वह एक ऐसी किताब थी जिसमे लेखक ने अपनी यात्रा का वर्णन किया था उसमे, उसने पश्चिम बंगाल की धाटी मे स्थित किसी मंदिर के बारे मे बताया था उसने बताया था कि् धाटी मे गहरे जंगल मे एक मंदिर है जिसके बारे मे कोई कुछ नही जानता, कि् वह किस समय का है, न और कुछ,

                                 मैने यह बात पुरातत्व वालो को नही बतायी क्योकि् मुझे नही लगता कि् हमे, वहाँ जाना चाहिए जो उन जंगलो मे रहते है इंसान उन्हे पसंद नही, मै अपनी जान मुश्किल से बचा पाया
                     आसषरी किताब के पीछे सन देखती है तो वह पाती है कि् उस पर 1842 लिखा था आसषरी वो किताब को बैग मे रख, वहाँ से चली जाती है शायद उसे यह नही पता था कि् उसक यह कार्य उसकी जिन्दगी को परिवर्तित कर देगा


 
                                             

                      CHAPTER 2

                 THE FRIENDSHIP



आसषरी को पुरानी किताबे पढने का शोक था वह वो किताब अपने साथ लाइब्रेरी से बाहर ले आयी थी वह स्कूल मे सेकेण्ड फलोर के गलियारे मे खड़ी हो वो किताब को पढने लगी जैसे-जैसे उसने वो किताब पढी उसकी दिलचस्पी बढने लगी वह मानो उस किताब मे खो गयी हो, तभी वहाँ आरीका आ गयी वह आ आसषरी के सर पर हाथ मारती है आसषरी हैरानी से देखती है -

 

आरीका   -     क्या हुआ तुम चौक क्यो गयी ? तुम तो ऐसे देख रही हो जैसे कि् लाइब्रेरी के प्रतिबन्धित खण्ड से कोई किताब ले आयी हो

आसषरी कुछ नही बोलती है

आरीका    -    यार तुम फिर प्रतिबन्धित खण्ड से किताब ले आयी, तुमसे मैने कितनी बार कहाँ है कही किसी को पता चल गया तो मुश्किल मे आ सकती हो

 आसषरी -    आरीका तुम समझ नही रही हो, ये पुस्तक कुछ अलग है 
इसे देखो तो  

          

आरीका - नही मुझे नही देखना, तुम ही देखो

 तुम इतना बाताओ कि् मेरे साथ चल रही हो या नही

आसषरी - कहाँ ?

आरीका - तुम अपनी ही दुनियाँ मे रहती हो तुम्हे तो पता है न स्कूल के कॉम्पडिशन शुरू हो गये है जल्दी ही दूसरे स्कूल के खिलाड़ी आ जायेंगे चलो मेरे साथ अब


आरीका, आसषरी को साथ मे ले जाती है आरीका अपना धनुष निकाल प्रेकटिस करने लगती है आसषरी दोबारा किताब पढने लगती है जल्द ही खेल शुरू हो जाते है सब दोस्त आरीका का नाम ले उसका मनोबल बढा रहे थे
               उसके खेले मे तीन राउण्ड थे पहले राउण्ड मे आग से तीर पार करा लक्ष्य भेदना था सभी स्कूल के खिलाड़ी प्रयास करते है परन्तु कुछ ही पास होते है आरीका की बारी आती है व सब उसे शुभकामना देते है


सावरी     -    चिंता मत करो तुम ही जितोगी

ऐशवर्य    -      जाओ और जा के उन्हे दिखा दो कितना दम है तुम मे

टाकष -        तुम ठीक तो हो न ? कुछ तो बोलो

आरीका -      ये मेरे बाये हाथ को खेले है अभी आरीका इतनी कमजोर नही है, बस एक काम करो आसषरी की किताब छिन लो, यह अभी भी उसे पढ रही है

ऐशवर्य -      आसषरी क्या यार

आसषरी -     माफ करना लो बन्द कर दी



आरीका जा धनुष को नमन करती है वह बाण संधान करती है व एक पल मे लक्ष्य भेद देती है दुसरे चरण मे आकाश मे गुब्बारा छोड़ना था व धर्नुधारी को गुब्बारा फोड़ना था उस राउण्ड मे मात्र एक ही छात्र पास होता है अब बारी थी आरीका की, आरीका जा अपने स्थान पर रूक इतंजार करती है गुब्बारा आकाश मे छोड़ा जाता है जैसे ही गन फायर कर सूचित करते है आरीका बाण निकाल निशाना साधती है वह एकाएैक बाण संधान कर देती है उसका बाण हवा को चीरते हुआ जाता है व लक्ष्य को भेद देता है आरीका उत्तीर्ण हो जाती है सभी खुश हो जाते है अब बचा था आखिरी राउण्ड, वह अत्यन्त कठिन था उसमे किसी बेजान लक्ष्य को नही भेदना था बल्कि सामने वाले खिलाड़ी को भेदना था   आप यह स्टोरी  SHRI DURGA DEVIब्लॉग पर पढ रहे है

दोनो खिलाड़ीयो को सुरक्षा कपड़े पहना दिये जाते है उनके बाण ऐसे थे कि् वह चोट नही पहुचाते थे केवल शरीर से जा चिपक जाते थे नियम यह था कि् जब तक तीर किसी के शरीर से जा न चिपक जाये तब तक वह हारता नही
                दोनो खिलाड़ी आमने-सामने आ जाते है गन फायर होते ही दोनो बाणो को निकाल लेते है दोने एक-दुसरे पर बाण चलाते है आरीका का निशाना इतना अच्छा था कि् वह सामने वाले के तीरो को अपने तीरो से रास्ते मे ही रोक दे रही थी आरीका मुस्कुराती है व उस पर तीरो की मानो बौछार कर देती है मगर सब तीर उसके आस-पास ही लगते है जैसे आरीका उससे खेल रही हो तत्पश्चात वह मुस्कुराती है व बाण चलाना रोक देती है सामने वाला मौका पा बाण संधान करता है वह बाण सीधे उसकी ओर आता है आरीका के स्कूल के सभी लोग धबरा जाते है परन्तु जैसे ही तीर वह आरीका के पास आता है आरीका उसे हाथ से पकड़ लेती है वह बाण को दूर फेक देती है


आरीका - अभी तुम बच्चे हो

वह और बाणो का संधान करता है आरीका स्थान से हट बाण निकाल संधान करती है वह बाण एक बार मे जा उसकी छाती पर चिपक जाता है

आरीका विजय हो जाती है सभी तालिया बजाने लगते है

अब बारी थी ऐशवर्य की, स्कूल मे कम्पयूटर ज्ञान की प्रतिस्पर्घा हो रही थी सभी को एक-एक कम्पयूटर दिया गया व उसके अन्दर से कुछ भी पूछ लिया जा रहा था उसमे कई बच्चे फेल हो गये जब ऐशवर्य की बारी आयी तो प्रश्नन पूछते ही उत्तर उसके मुख पर था दूसरे राउण्ड मे उन्हे पुरानी जेनेरेशन के कम्पयूटर रन कराने को कहॉ, जिसमे केवल मशीनरी भाषा का इस्तेमाल होता था ऐशवर्य ने इतनी तेज गति से प्रोग्राम चलाया कि सब हैरान हो गये ऐशवर्य पास हो गया अब बचा तीसरा राउण्ड उसमे उन्हे कम्पयूटर हैक करना था उन्हे एक डमी कम्पयूटर को हैक करने को कहॉ गया वह इतना मजबूत फायर बॉल का था कि् कोई उसे तोड़ ही नही पा रहा था सबने सोचा कि् इस बार कोई नही जितेगा तभी ऐशवर्य की बारी आती है वह कम्पयूटर पर बैठते ही पहले उसको समझता है देखता है सब सोचते है कि् यह नही कर पायेगा लेक्नि ऐसा हुआ नही ऐशवर्य फायर बॉल को समझ गया उसने सीस्टम हैक कर लिया
ऐशवर्य जीत गया सभी उसको खुश हो बाधाई देने लगे लेक्नि उसके मन मे कुछ और ही चल रहा था












 


 

 

 

ऐशवर्य    -      आप सभी से मेरा एक निवेदन है

जज      -           क्या ?

ऐशवर्य   -    मै चाहता हुँ कि् जितने भी स्कूल आये है उनके जो स्टडी ऐप है मुझे उन्हे हैक करने का टास्क दिया जाये

जज    -     नही ऐसा नही हो सकता यह अन्य स्कूलो कि प्राइवेसी के विरूध है

ऐशवर्य - यदी मै हार गया तो मेडल नही लूगां


सब स्कूल सोचते है कि् नीचा दिखाने को यह अच्छा मौका है वह मान जाते है ऐशवर्य जा अपना लैपटॉप ले आता है सब स्कूल अपना ऐप अपने लेपटॉपो मे खोल बैठ जाते है ऐशवर्य अपने लेपटॉप को खोल शुरू हो जाता है प्रारम्भ मे सब सेचते है व मुस्कराते र्है देखते-देखते बीस मिनट हो जोते है तभी जज कहता है -


जज    -      बेटा आप हार मान जाइये यह हाई सुरक्षित ऐप है ऐशवर्य लेपटॉप चलाना छोड़ देता है ऐशवर्य के स्कूल के टीचर उदास हो जाते है सब अन्य स्कूल के हँसने लगते है लेक्नि तभी वहाँ कुछ अजीब होता है सभी ऐप हैंग होने लगते है व एकदम से उन पर लिख कर आता है

I AM AESHVARYA NOW YOUR APP IS MY SLAVE


अन्य स्कूलो की हँसी बन्द हो जाती है ऐशवर्य जीत जाता है
अब बारी थी तलवार बाजी की, दुरमेश्वर को स्कूल की ओर से भेजा जाता है सभी बच्चो का आपस मे बेटल कराया गया उनको लकड़ी की तलारे दी गयी वहाँ जो अन्य खिलाड़ी आये थे वह अच्छे तो थे परन्तु इतने माहिर भी नही कि् दुरमेश्वर को हरा दे, दुरमेश्वर ने वीरता से खेल खेला व सभी को हराते हुए आगे बढा अन्त मे उसका सामना उससे तीन साल बड़े यौद्वा से हुआ








 


 

 

 

 

खिलाड़ी     -    हार मान जाओ ईज्जत बच जायेगी

दुरमेश्वर    -     अच्छा जब तुम हार जाओगे, तो अपने आप को समझा लेना कि् अगली बार जीत जाउंगा


दोने का मैच शुरू हो जाता है खिलाड़ी के हाथ तेज गति से चल रहे थे वह लगातार प्रहार कर रहा था मानो वह मारने के उददेश्य से आया हो दुरमेशवर भी उसे वीरता से उत्तर देता है दोने मे कड़ा युद्व होता है वह खिलाड़ी तेज तो था लेक्नि ताकतवर नही, दुरमेशवर उसे जल्द ही हरा देता है वह उसकी तलवार ले उसके दो भाग कर देता है दुरमेशवर जीत जाता है
          
  अब बारी थी सावरी की उन्हे पुराने मैप दिये गये व एक पनना जिसमे उन्हे पुराने मैपो को समझ पनने पर लक्ष्य तक पहुचने के लिए किन-किन मुस्बितो आदि का सामना करना था लिख कर सूचना देना था वह मैप पुराने-पुराने थे जिनके मार्ग को समझना ही मुश्किल था सभी का दिल तेज गति से चल रहा था कि् कही सावरी हार न जाये अन्य स्कूल के बच्चे मानो उन मैपो मे खो गये हो वह मानसिक रूप से ऐसा भटके कि् खो के रह गये मगर सावरी भटकी नही उसने मैप को समझा मुसीबतो का आकलन किया लक्ष्य हेतु कौन सा मार्ग उचित रहेगा इसका आकलन किया व तत्पश्चात उसने लेख लिखा तत्पश्चात सभी के लेख जमा हो गये जजो ने जब सावरी का लेख देखा तो वह हैरान हो गये कि् इतना अच्छा वर्णन एक बच्ची ने किया है सावरी जीत गयी

अब की बारी थी वारकी की, सभी को बाइके दी गयी व चैलेंज यह था कि् निश्चित दुरी निश्चित समय मे पार करनी थी सभी लाइन पर आ जगह ले लेते है व इशारा पारते ही रेस शुरू हो जाती है सब तेज गति मे जा रहे थे वारकी मुस्कुराता है व उन्हे बच्चो की भाति हरा देता है सभी स्कूल के लोग हैरान हो जाते है
                             तत्पश्चात गन राउण्ड आता है टाकष व अन्य को एक-एक बुलेट दी जाती है व लक्ष्य था आकाश मे उड़ता रिमोड कन्ट्रोल प्लेन जिसको ऑपरेट करने वाला ऐसे उड़ा रहा था कि् निशाना न लग पाये सभी खिलाड़ी के निशाने चुक जाते है तत्पश्चात टाकष की बारी आती है


 


 

 

टाकष मुस्कुरा कर जजो से कहता है -


टाकष     -      ज्यादा महंगा प्लेन तो नही है न ?

जज      -     क्यो ?

टाकष    -      क्या है न प्लेन बचेगा नही

     टाकस गन हाथ मे लेता है व निशाना लगाता है टाकस गन चलाता है तभी बुलेट जा प्लेन पर लगती है व वह हवा मे ही नष्ट हो जाता है अन्त मे था चेस का खेल अब सुवेन्द्र को जाना था वहॉ कई छात्र आये थे व सब जीतना चाहते थे शतरंज लगा दी जाती है व खेल      शुरू होते है सुवेन्द्र के दिमाग व प्लेनिंग के आगे कोई टिक ही नही पाता है खेल मे सुवेन्द्र जीत जाता है
          
 सभी खुश थे सबको मेडल दे सम्मानित किया जाता है सब दोस्त आपस मे बाते करते है व रात मे पार्टी मे मिलने को कहते है

                           
                          
                                                                    

                  CHAPTER 3


     ACCEPTANCE IN the APPLE GARDEN


     सभी दोस्त देहरादून के सुन्दर गार्डन मे मिलते है दरअसल सभी के माता-पिता ने यह पार्टी अरेंज करी थी उनके माता-पिता मिल रहे थे व बाते कर रहे थे सभी बच्चे बैठ अलग बाते कर रहे थे 

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ऐशवर्य   -   आज तो मजा आ गया,   हम सभी विजेता है आसषरी माफ करना यार इस बार कराटे प्रतियोगीता नही हुई, नही तो तुम भी विजेता होती

आसषरी   -   कोई बात नही

सावरी    -   वैसे आज हमारी आरिका ने क्या धुनुष चलाया

टाकष    -     वो तो है

आरीका    -     आसषरी अब उस किताब को रख भी दो, तुम अभी भी उसे पढ रही हो

दुरमेशवर    -    क्या है उस किताब में ? ,
तुम प्रतिबन्धित खण्ड से किताबे मत लाया करो

आसषरी - यह कोई सामान्य पुस्तक नही

आरीका - अच्छा क्या है इसमे ?

दुरमेशवर - कही इसमे अमरता का वर्णन तो नही ?

सभी हँसने लगते है


आसषरी   -    नही मेरे दोस्त, ऐसा कुछ नही इसमे एक मन्दिर का 

                  वर्णन  है

                

आरीका    -       क्या बताया है इसमे ?

आसषरी     -    इसमे लेखक ने खुद की यात्रा का वर्णन किया है उसने बताया कि् मै ऐसे मन्दिरो की खोज कर रहा था जो रामायण या महाभारत काल से जुड़े हो लेक्नि मै तो कही और ही पहुँच गया, मैने एक ऐसा मन्दिर खोज लिया जो किसी और ही काल से जुड़ा था जो रामायण व महाभारत काल से भी पहले का था लेक्नि अफसोस की बात है वह जिस काल का था उस काल व उससे सम्बन्ध रखने वाली चीजो को किसी श्राप के कारण मानवो ने भूला दिया पहले मुझे खुशी हुई कि् अब मै मानव जाति को एक नये इतिहास से मिलाउंगा लेक्नि जल्द ही मुझे पता चला की मै कितना गलत था, वो मन्दिर चारो ओर वन से धिरा था मन्दिर मे वनो की बेलो ने धिराओ किया था वह मन्दिर मे अदभुद शान्ति थी मन कर रहा था कि् दुनियां का त्याग कर बस वही रहने लगे वहाँ देवीआदिपराशक्ति के श्री दुर्गा रूप की प्रतिमा लगी थी, गणेश की भी एक मुर्ति बनी थी उस स्थान पर कोई कम्पस काम नही करता है नाही कोई अन्य साधन जब मैने  वनो को देखा तो मुझे लगा की मुझे यहाँ नही होना चाहिए था वहाँ राक्षसी जीव निवास करते थे वो इंसानो को चीर खा जाते थे रात मे उन्होने आक्रमण किया तो मै बचाव मे मन्दिर मे भाग गया वह मन्दिर मे प्रवेश नही कर पाये सुबह हाने पर मै जान बचा कर भाग गया मैने कभी इसके बारे मे कुछ नही बताया क्योकि् वो जगह हमारे लिए नही थी परन्तु अब मै बूढा हो गया हुँ व कुछ ही दिन जियूगां ये राज मेरे साथ ही दफन न हो जाये इसीलिए मै पुस्तक छपवा रहा हुँ मैने इसमे उस स्थान पर जाने का मैप बनाया है लेक्नि रहस्यमय ढंग से ताकि् वोही वहाँ जा सके, जो समझ पाये व जो काबिल हो तथा देवी जिसको स्वयं चाहे, लोग इसे पागल बुढे की कहानी का दर्जा देंगे जब उन्हे ऐसा स्थान नही मिलेगा लेक्नि मेरा विश्वास मानिये मैने वह स्थान देखा है व एक और बात वह मन्दिर दो यौद्वाओ ने बनाया था व अपने दिव्यास्त्र उस जगह रखे थे जब वह ब्राहमाण्ड से दानव राज्य का पतन कर आये थे वह दिव्यास्त्र इतनी ताकत रखते है कि् दुनिया जीती जा सके मैने उस स्थान की तस्वीरे खाची थी जो पुस्तक मे दिखायी है


उस किताब मे ब्लेक एण्ड वाइट तस्वीरे थी उनमे मन्दिर, लेख आदि की तस्वीरे थी जो अदभुद थी

आरीका    -    यह पुस्तक तो किमती है

आसषरी    -      मैने कुछ सोचा है
 

आरीका   -    क्या ?

आसषरी   -     क्यो न हम वहॉ जाये ?

आरीका    -     भला क्यो ?

आसषरी   -    देखो मरना तो एक दिन है ही, तो क्यो न एक बार ऐसी जगह देखी जाये

आरीका    -   और हम ये करेंगे कैसे?

आसषरी   -   अपने चारो ओर देखो हम सबमे कुछ कला है शायद उपर वाले ने हमें इसके लिए बनाया है सावरी मैप को पढ सकती है हम मे से कई यौद्वा है

दुरमेशवर   -   मुझे नही लगता हमे जाना चाहिए

टाकष    -    वैसे आरीका सही कह रही है हमे जाना चाहिए

आरीका   -    सही है ऐसी जगह हम कभी नही जा पायेंगे हमे एक बार कोशिश करनी चाहिए

टाकष -    अब सबने मान ही लिया तो चलते है आखिर हमारी आसषरी ने आदेश किया है

सभी मान जाते है


आरीका   -    लेक्नि हम माता-पिता से क्या कहेंगे ?

टाकष    -   कह देंगे धुमने जा रहे है

ऐशवर्य   -     उन्हे सच बताया तो कभी नही जाने देंगे

टाकष    -    तो ठीक है अभी चल इजाजत ले लेते है

सभी जा पैरेन्स से बात करते है वह कहते है कि् उन्हे पश्चिम बंगाल जाना है माता-पिता मान जाते है परन्तु उन्होने पुरी बात नही बतायी

 

सभी के माता-पिता एक मत मे कहते है -


आसषरी हम सब तुम्हारे कहने पर जाने दे रहे है, हमारे दिल के हिस्सो को जैसे ले जा रही हो वैसे ही वापस भी लाना यह तुम्हारा दायित्व है हम इनके बिना जी नही सकते



आसषरी - मै वचन देती हुँ इन्हे जीवित ही वापस लाउंगी या स्वयं भी नही आउंगी

      सभी को जाने की इजाजत मिल जाती है वह सब खुश हो पार्टी को इंजॉय करने लगते है
               

                   उन बच्चो को यह नही पता कि् वह जो कदम उठा रहे है उनसे उनका जीवन बदल जायेगा वह ऐसे श्रेत्र मे जा रहे थे जो दानवो से धिरा था रात्रिचर विचरण स्थान पर जाना उनके लिए सही नही था।

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                      CHAPTER 4
                                             
             THE PREPARATION


सभी के जाने के निर्णय लेने के बाद सब, कुछ चिन्तित भी थे और धबराये हुए भी उनमे कई भाव आ रहे थे धबराहट, खुशी, उत्साह आदि जैसे, लेक्नि वह सब खुश थे कि् जो भी कर रहे है आखिर वह साथ मे है


सुवेन्द्र    -    अब जब हमने निर्णय कर ही लिया है तो हम सबको पहले यह समझ लेना होगा कि् यह कोई आसान कार्य नही है लेक्नि नामुंकिन नही, जिसप्रकार एक युद्व को विजय करने के लिए अच्छी नीती चाहिए होती है उसी प्रकार लक्ष्य प्राप्ती हेतु पथ पर हमें एक अच्छी नीती की जरूरत है हमे पहले ही निर्धारित कर लेना होगा कि् क्या करना है हमारे कुछ मानक होगें सुरक्षा, मार्गदर्शन, जाकर क्या करना है व कितनी देर रूकना है

सावरी   -
    मैप की चिन्ता मत करो, मै मैप उपलब्ध कराउंगी

सुवेन्द्र   -     आरीका , आसषरी, दुरमेशवर , टाकष , उपेन्द्र तुम हम सबको सुरक्षा दोगे हमे हथियार आदि भी रखने होंगे ताकि् सुरक्षा मिल सके, वारकी तुम वाहनो का इंतजाम करोगे आसषरी तुम्हारा काम है कि् तुम इस किताब को पढो व आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराओ ऐशवर्य तुम हमारे लिए ट्रैकिंग के लिए कुछ प्रबन्ध करो हम किसी भ्रमण पर नही जा रहे है यह खतरनाक है तो सब काम शुरू करो

सभी ने स्कूल से कुछ माहिनो की छुटटी ले ली वह सब साथ मे मिल तैयारीया करने लगे तीन महीने तक उन्होने पूर्ण परिस्थती हेतु तैयारी करी, अब वह समय था जब वह तैयार थे


सुवेन्द्र    -    तो दोस्तो मेहनत के बाद हम आखिर तैयार हो ही गये हमारे पास जितने भी हथियार है वह या तो चाँदी या चंदन की लकड़ी या लोहे आदि के है क्यो कि् किताब मे उस आदमी ने बताया है कि् वह राक्षस चाँदी या चदंन से ही मारे जा सकते है लेक्नि सुरक्षा से हमने लोहे आदि के हथियार भी लिए है सावरी ने मैप तैयार कर लिया है वारकी ने वाहनो का बेहतर इंतजाम कर लिए है ऐशवर्य ने एक खोजी सॉफटवेयर बनाया है जो जगह खोजने के साथ-साथ हमारी लोकेशन भी रखेगा तो अब हम जाने के लिए तैयार है तो दोस्तो आज से एक हफते बाद हम निकलेंगे तब तक सब आराम कर लो

सभी ने जाने का निर्णय कर लिया था लेक्नि यह बच्चे यह नही जानते थे कि् यह कितनी व्यापक मुसीबत मे हाथ डाल रहे है


                                                           
                                                               

                  CHAPTER 5
           

            THE DARK FOREST









 


 

 

सभी तैयार हो अपनी गाड़ीयो मे बैठ देहरादून से पश्चिम बंगाल की ओर निकल गये वह चार कारो मे थे उनकी कारो मे सुरक्षा के पूर्ण इंतजाम थे उस आदमी द्वारा बतायी जगह पर वह पहुच गये वह एक पहाड़ी थी अब उन्हे नीचे धाटी मे उतरना था वह एक कच्ची सड़क के सहारे नीचे वाहनो मे जाते है वह जैसे-जैसे आगे बढते है एकान्त मे स्वयं को महसूस करते है कुछ धण्टे वह ऐसे ही चलते रहते है आगे बढने के साथ-साथ सड़क के दोने ओर पेड़ो की मात्रा बढती जाती है सूरज की रोशनी छुपती जाती है

एक समय बाद सड़क के अन्तिम छोर पर आ जाते है अब उन्हे पेदल ही जाना था सभी नीचे उतर अपना सामान निकालते है वह अपनी गन, धनुष, तलवार, चाकू आदि हथियार निकाल आगे पैदल ही चल देते है उन सबको सावरी रास्ता दिखा रही थी वह रास्ता इतना भयानक लग रहा था कि् देख कर ही भय आ जाये पगडंडी के दोने ओर जंगल था चलते-चलते उन्हे एक पेड़ दिखता है उसे देख वह डर जाते है उस पर किसी जानवर के नाखूनो के निशान थे उसपर किसी जानवर ने नाखून रगड़े थे -


सावरी    -    देख रहे हो इसे, मैने कभी इतने भयानक निशान नही देख

आरीका   -    लग रहा है कि् किसी जानवर ने खरोचा हो लेक्नि इतने गहरे निशान

ऐशवर्य    -    कही हमने यहाँ आ गलती तो नही करी ?

आसषरी   -     अब आ गये है तो आगे चलते है

आरीका   -     तुम अभी भी आगे जाना चाहती हो जरा देखो, सोचो कौन रहते है यहॉ ?

सावरी   -    बस करो कोई चिन्ता की बात नही है अब आगे चलो, हम जायेंगे व सीधे आ जायेंगे कोई चिन्ता की बात नही है

ऐशवर्य   -   सावरी अगर उन जानवरो ने हमला कर दिया तो हम बच नही सकेगें

सावरी    -   जो भी हो हम आसषरी को अकेले नही छोड़ सकते

आरीका   -    तुम सही कह रही हो मुझे माफ करना आसषरी मै अन्त तक तुम्हारे साथ हुँ

ऐशवर्य    -   हम सब एक-दुसरे के साथ है

सावरी    -    अब आगे चलो

वह आगे बढ जाते है वह बस चलते जा रहे थे परन्तु जल्द ही उन्हे रूकना पड़ता है
                         उनके सामने तीन राहे आती है वह तीनो एक जैसी थी अगर वह गलत राह चुनते तो भटक कर मारे जा सकते थे

आरीका   -    रूक क्यो गये ? सावरी रास्ता बताओ

सावरी    -    क्या बताऊ, मैप में इसका कोई वर्णन नही है

आरीका    -    तो क्या उस आदमी ने हमे बेवकूफ बनाया है ?

ऐशवर्य    -    मुझे नही लगता देखो अगर हम शान्त रहे तो शायद हम खोज पाये

आरीका    -    आसषरी तुम कहाँ जा रही हो ?

आसषरी अचानक बीच वाले रास्ते पर जा रही थी मानो उसे वहॉ कोई लेजा रहा हो परन्तु , वह रूक जाती है मानो आरीका की आवाज ने उसे जगा दिया हो

आसषरी    -    क्या हुआ ?

सावरी    -   तुम बीच वाले रास्ते पर जा रही थी क्या तुम रास्ता जानती हो ?

आसषरी   -   नही ,लेक्नि मुझे लग रहा है कि् यह मुझे बुला रहा है जैसे मुझे वहाँ स्थित मंदिर बुला रहा हो

ऐशवर्य   -    तुम्हे कैसे पता वहॉ मंदिर है ?

आसषरी    -    पता नही, लेक्नि मुझे पता है मुझे वो राह पुकार रही है मुझे लग रहा है वहाँ से मेरे शरीर मे कोई ऊर्जा आ रही है यह वो ही है जिसको मै हमेशा से ढुंढ रही थी

आरीका   -    हमें कुछ समझ मे नही आ रहा है

दुरमेशवर   -    मुझे लगता है कि् हमें आसषरी के साथ जाना चाहिए, देखो हम मे से यही है जिसको कुछ पता है अगर चुनाव करना ही है तो आसषरी के मतानुसार करो

ऐशवर्य    -    सही है हम ऐसा ही करेंगे


सभी आसषरी के साथ चल देते है वह जैसे ही उस मार्ग पर जाते है उन्हे दिव्य शान्ती का अनुभव होता है वह आगे बढते जाते है तभी आरीका की नजर मार्ग के किनारे एक शिला पर पड़ती है वह उसके पास जा देखती है, वह कपड़े से उसे साफ करती है उस पर एक चिन्ह बना था व कुछ लिखा था लेक्नि वह उसे पढ नही पाती है क्योकि वह कोई प्राचीन भाषा थी जो लुप्त हो चुकी थी आरीका आवाज लगा सभी को बुला दिखाती है सब आ उसे देखते है -


आरीका   -   कुछ समझ मे आ रहा है ?

सावरी   -   नही यह प्राचीन व लुप्त भाषा है ऐशवर्य तुम देखो

ऐशवर्य   -   मैने एक सॉफटवेयर बनाया है कोशिश करता हुँ

ऐशवर्य - लेपटॉप निकाल शिला को स्केन करता है लेक्नि कोई लाभ नही होता है

ऐशवर्य -    यह भाषा के बारे मे कोई कुछ नही जानता है

आसषरी आ उस शिला को देखती है उस शिला के नीचे एक मुहर लगी थी

आरीका   -   यह संस्कृत नही जिसे तुम पढ लो

आसषरी उस शिला को देखती रहती है मानो उसमे खो गयी हो वह उस मुहर को झुक प्रणाम करती है

आरीका   -    आसषरी इस पर क्या लिखा है -


आसषरी    -    इस पर लिखा है कि्‘ यह राह व मन्दिर का निर्माण दो यौद्धाओ द्धारा निर्मित है यह उस जगत जननी के यौद्धाओ ने बनाया है जिस जगत जन्नी ने इस सम्पूर्ण ब्राहमाण्ड व ऐसे कई ब्राहमाण्डो को अपने हाथो से रचा है यह स्थान दुर्गा साम्राज्य का हिस्सा है इस रास्ते व मन्दिर पर कोई ऐसा जीव नही आ सकता जो दानव सोच का हो ’

यह जो मुहर है यह दुर्गा चिन्ह की है

सावरी     -    यह लेख तुमने कैसे पढा ?

आसषरी    -    पता नही, बस पढ लिया

आरीका    -     हमें आगे चलना चाहिए

सभी आगे चलने लगते है आरीका चलते-चलते आसषरी को देखती है वह चौक जाती है, आषसरी के नेत्र चमक रहे थे परन्तु वह तभी ठीक हो जाते है

सावरी   -    क्या हुआ ?

आरीका   -    आसषरी के नेत्र चमक रहे थे

ऐशवर्य    -     अच्छा
 

आरीका    -    मै सही कह रही हुँ
 

ऐशवर्य   -    अच्छा तो तुम्हारे नेत्र भी चमक रहे है

सावरी    -    बस करो, आरीका देखो हम सब थक गये है और उपर से रोशनी भी आ रही है हो सकता हो उसकी आँखो मे रिफलेशन हो रहा हो

आरीका    -    यह धर्नुधारी की आँखे है कभी धोखा नही खाती है

दुरमेशवर   -    हमें बढते रहना चाहिए देखो देर हो रही है

सावरी   -    सही कह रहे हा, आरीका तुम मेरे साथ आओ

वह सब आगे चलने लगते है उन्हे आगे चलते हुए काफी देर हो जाती है लेक्नि अभी तक कोई मंदिर नही दिखा था सभी परेशान दिख रहे थे आसषरी उस किताब को खोल उसमे देखने लगती है कि् इस स्थान को कोई वर्णन है कि् नही, लेक्नि उसे कुछ नही मिलता है वह दोस्तो को देखती है तो वह सब आगे चलते जा रहे थे सब परेशान दिख रहे थे आसषरी उदास होकर नीचे बैठ जाती है सभी दोस्त थोड़ी आगे निकल जाते है तभी आरीका को आसषरी की अनुपस्थित का अनुभव होता है - आप यह स्टोरी  SHRI DURGA DEVIब्लॉग पर पढ रहे है


आरीका    -    ये आसषरी कहाँ गयी ?      

सावरी     -    यही तो थी

दुरमेशवर   -    वो देखो वो तो पीछे ही रह गयी

वह आसषरी के वापस जाते है

आरीका   -    क्या हुआ ?

आसषरी   -   कुछ नही

आरीका   -   तो पीछे क्यो रूक गयी ?

सावरी   -   आसषरी क्या हुआ ?

आसषरी   -    मैने तुम सबको यहाँ लाकर मुकिल मे डाल दिया

आरीका   -    अरे, तुम ऐसा क्यो सोच रही हो, हम सब अपनी ईच्छा से आये है

सभी उसके पास बैठ जाते है
 

ऐशवर्य   -   तुम ऐसा क्यो सोच रही हो हम सब तुम्हारे साथ है

सावरी   -    सही है, हम अलग नही एक है और तुम हमारी दोस्त हो हम आखिरी दम तक तुम्हारे साथ है

दुरमेशवर   -   आसषरी हम हर जगह तुम्हारे साथ है हम तुम्हे कभी अकेले नही रहने देंगे

आरीका - अगर तुम्हारे कारण मृत्यु भी हो गयी तो कोई गम नही और अगर तुम्हे कुछ हो गया तो हम भी प्राण त्याग देंगे

सभी आसषरी को बताते है कि् वो सब उसके साथ है तभी आसषरी के पास कई तित्तलिया आ जाती है व उन सबके कन्धे पर बैठ जाती है

आरीका   -   देखो यह कितनी सुन्दर है

सावरी   -   हम हार नही मान सकते, देखो प्रकृति हमारे साथ है

आसषरी उठ जाती है वह फिर से लक्ष्य प्राप्ती हेतु तैयार थी, सभी आगे बढने लगते है
आगे मार्ग मे उन्हे कुछ मुर्तियाँ मिलती है वह मुर्तियो मे कुछ अलग था वह अत्यन्त पुरानी लग रही थी मानो सदियो पुरानी हो फिर भी वह अपनी ओर आकषि्र्त कर रही थी उसमे एक मुर्ति पुरूष व दुसरी स्त्री की थी वह दोने की आकर्षक वेषभूषा दिख रही थी उन्हे देख लग रहा था कि् मानो सम्पूर्ण जीवन किसी की भक्ति मे लगा दिया हो, जब दुनिया राक्षसी शासन के आघीन थी तो देवी ने उन्हे खड़ा किया व उन्होने सम्पूर्ण दूनियां को स्वतंत्र कराया आज केवल उनकी मुर्ति ही रही वह न जाने कहाँ चले गये लेक्नि उनकी मुर्ति देख लग रहा था कि् वह कह रहे हो हमने अपना जीवन देवी के आघीन रह बिताया व हम तब भी खुश थे और अब भी खुश है
 
सभी उन मुतियो को देखते है -

आरीका   -    यह कितनी अदभुद है

सावरी   -   यह किसकी है क्या किसी देवी-देवता कि् है या अन्य किसी की ?

आसषरी   -   हमे नही पता

ऐशवर्य    -    यह जिनकी भी है यह अत्यन्त खास रहे होंगे
 

दुरमेशवर - लेक्नि अब इन्हे समाज ने भूला दिया

आरीका   -    यह स्त्री कितनी सुन्दर रही होगी

दुरमेशवर   -   इस आदमी को देख लग रहा है कि् यह अत्यन्त बलवान रहा होगा

सावरी    -   अब हमे आगे बढना चाहिए


सभी आगे जाने लगते है आसषरी पीछे मुड़-मुड़ कर देखती है वह बार-बार उन मुर्तियो को देखती है वह मुर्तियो पर तिततलिया बैठती है मानो वो कह रही हो कि् हम इनके बारे मे जानते है काश हम तुम्हे बता सकते कि् इनकी कितनी अविस्मरर्णीय गाथा है
                 तभी वहॉ का माहौल बदल जाता है तित्तलियां , बसंत की धुप व शान्त माहौल देख लग रहा था कि् मानो वहॉ सबसे ज्यादा शान्ति है आगे मार्ग मे उन्हे कई पत्थर मिलते है उन पर नक्काशी हुई थी उसमे किसी जंग का वर्णन था परन्तु उसे देखने से ही लग रहा था कि् न यह रामायण, न यह महाभारत का वर्णन है बल्कि यह तो किसी और ही जंग का वर्णन है परन्तु मानव सभ्यता इसके बारे मे नही जानती थी
                     उसमे दोनो यौद्वा दानवो, राक्षसो, प्रेतो, डायनो से युद्व करते दिखते है सभी उसे देख हैरान हो जाते है वह उन चित्रो को गौर से देखते है परन्तु वह समझ नही पाते कि् यह किस युद्व का वर्णन है ? वह जैसे-जैसे आगे बढते है। उन्हे दिव्यता का अनुभव होता है वनो से भरा मार्ग जैसे ही खत्म होता है उन्हे एक तालाब दिखता है उसमे हंस तैर रहे थे उसके आगे उन्हे एक मन्दिर दिखता है, सभी गहरी व सुकुन की सांस लेते है


                                                   

                    CHAPTER 6
                                            

                 THE TEMPLE


 उन्हे विश्वास नही हो रहा था वह मन्दिर उनके सामने था वह सब उसके अन्दर जाते है वह मन्दिर देखने से ऐसा लग रहा था कि् वह अभी तक छुपा था वह सब उसके अन्दर जाते है मन्दिर मे पेड़ो की लाताए झुल रही थी दिवारो पर नक्काशी बनी थी उसमे महादेव, नन्दी , देवी ज्वाला , देवी शीतला, देवी काली की मुर्तिया थी वहाँ एक और मुर्ति थी उस मुर्त के पैरो मे दोने यौद्वाओ की मुर्त थी वह हाथ जोड़ बैठे थे,
                         वह मूर्ति थी देवी आदिशक्ति दुर्गा की, वह मुर्तियो को देख लग रहा था कि् इनकी स्थापना बहुत समय पहले हुई है काफी समय से वहाँ कोई पूजा नही हुई सभी मौन हे उस मन्दिर की आभा को देख रहे थे -

आरीका    -     आसषरी तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद तुम हमे ऐसी अदभुद जगह लायी, मन कर रहा है कि् यही की हो के रह जाउ

ऐशवर्य    -   यह जिस भी काल का है उसका मुझे नही पता लेक्नि मन कर रहा है कि् मानव सभ्यता का त्याग कर यही का हो जाउ

सावरी    -    यह पुस्तक सही थी हमने यह मन्दिर खोज ही निकाला

आरीका   -   नही हमने नही , इस मन्दिर ने हमे आने की इजाजत दे दी

ऐशवर्य   -    ये इसकी दिवारो पर किस समय का वर्णन है ?

आसषरी   -   हमें नही पता ?

वारकी     -    क्या यह चित्र वास्तविक धटना का वर्णन कर रहे है ? या ये ऐसे ही बने है कल्पना से

आसषरी   -   यह जिस भी सभ्यता के समय का है यह सत्य है क्योकि् कोई भी सभ्यता अपने मन्दिरो मे अवास्तविक तथ्यो का वर्णन नही करती है

ऐशवर्य   -    तो अब क्या करना है ?

टाकष   -    इस मन्दिर की जानकारी इकटठा करो फोटोग्राफ लो और ज्यादा से ज्यादा सूचना लो

आसषरी   -    नही ऐसे नही

सावरी     -   क्या मतलब ?

आसषरी   -    यह मन्दिर को देखो कितना पुराना है पता नही कब से यहाँ अराधना नही हुई

ऐशवर्य   -    तो तुम्हारा मतलब क्या है ?

आसषरी   -    हमें यहॉ पूजन करना चाहिए

सावरी    -    तुम सही कह रही हो यह जो भी स्थान है हमे प्रवेश मिला तो हमें पूजन करना चाहिए

आरीका   -   मुझे लग रहा है कि् यह स्थान देवीये है हमे पूजन करना चाहिए

टाकष   -   ठीक है तो सभी सहमत है तो करते है लेक्नि पहले यहाँ की थोड़ी साफाई हो जाये

आरीका   -   ठीक है

सभी मिल मंदिर को साफ करने लगते है उन्होने पेड़ो के सूखे पत्ते हटाये अनावश्यक बेलो आदि की कटाई करी जो पेड़ मंदिर के भीतर आ गये थे उनकी छाटाई करी लेक्नि उन्होने वनो को पूर्ण रूप से नही काटा केवल उस भाग की छाटाई करी जो मंदिर के द्वार को रोक रहा था या जो पूरे मंदिर मे फैला था

आरीका   -   तुम वनो को एकदम से क्यो नही मिटा रही हो ?

आसषरी   -   यह वन ही वो जीव है जो पता नही कितने समय से यहाँ है यह वो जीव है जो इस मिंदर मे पता नही कितने समय से है, हो सकता हो इन्हे इस मदिंर की दिव्यता का ज्ञान हो और जैसे मानव पूजन करता है यह भी स्थिर रह मन्न करते हो ऐसे मे अगर हमने इन्हे मार दिया तो पाप होगा
उन नौ दोस्तो को पूरा दिन लग गया, उन्होने पूरा मंदिर व्यवस्थित कर दिया
 उन्हाने पूरा मंदिर सभी मुर्त समेत साफ कर दिया व जो वन मंदिर मे आये थे उनकी छाटाई कर उनकी शाखाओ को मंदिर के चारो ओर इसप्रकार से कर दिया की वह अत्यन्त सुन्दर लग रहे थे उन वन मे गुड़हल, अन्य के फूल लगे थे वह सुहावनी हवा संग खुशबु दे रहे थे काम पूर्ण होने पर सभी थक गये

आरीका    -    कितना सुन्दर लग रहा है यह मंदिर

आसषरी   -    सही कह रही हो

आरीका - लेक्नि हम पूजन कैसे करेगें ? हम कोई सामग्री तो लाये नही है

आसषरी   -  मै देवी आदिशक्ति की पूजा करती हुँ और जब मे कही बाहर जाती हुँ तो सामग्री साथ मे ही रख लेती हुँ व पुजन कर लेती हुँ

आरीका   -   तो क्या तुम देवी की मूर्त भी साथ मे रखती हो

आसषरी   -   नही

आरीका - ’ क्यो ?


आसषरी -     देवी तो कण-कण मे है, मै किसी भी साफ स्थान पर बैठ देवी को समष मान अराधना कर लेती हुँ व पुष्प अर्पण कर देती हुँ

आरीका   -   अच्छा, तो वो तुम थी याद है हम नौवी क्लास मे कैम्प पर गये थे जहाँ एक पुराने मंदिर मे हमने कैम्प बनाया था हमारे उठने से पहले कोई वहाँ रोज एक फुल चढा जाता था

आसषरी   -   हाँ वो मै ही थी मैने उस समय इस लिए नही बताया क्योकि् मै नही चाहती थी कि् कोई मेरे उपर कमेंट करे मुझे पूजन मे हस्तशेप पंसद नही

ऐशवर्य   -    अरे तुम क्या बाते कर रही हो अराधना करनी है

उस मंदिर के दानो ओर विपरित दो तालाब थे वह चारो ओर वन से धीरे थे एक मंदिर के दाये ओर था दुसरी बाये ओर, लड़के दाये वाले मे स्नान करने गये व लड़कियाँ बायी ओर वाले मे ।
        स्नान के बाद वह सबने साथ मिल अराधना करी सर्वप्रथम गणेश की तत्पश्चात देवी आदिशक्ति दुर्गा, महाशक्तिशाली काली माँ, महा तेजवान ज्वाला माँ, व शीतलता देने वाली शीतला माँ की मुर्त के समक्ष बैठ पूजन किया उसके बाद उन्होने महादेव कार्तिके व नंदी का पूजन किया
          जब अराधना पूर्ण हुई तो वह सब मंदिर के अन्दर बैठ गये अंधेरे मंदिर मे प्रत्येक मूर्त के समक्ष एक दिया जल रहा था व पुष्प अर्पित थे उस स्थान पर वह नौ दोस्त ही थे वह पूरी जगह सुनसान थी वह मंदिर आकर्षित लग रहा था

आरीका   -   आज हमने जिस स्थान पर अराधना करी है पता नही कितने समय से किसी ने ईधर पूजन नही किया है

आसषरी   -   मैने तुम लोगो से कुछ बात छुपायी है

आरीका   -   आसषरी मैने कहॉ था न कि् कोई कुछ नही छुपायेगा

आसषरी   -
   मै कैसे बताती तुम मानते ही नही

दुरमेशवर   -   अब बात मत बढाओ, आसषरी तुम डरो मत बताओ

आसषरी   -   मै तुम्हे पढ कर ही बता देती हुँ

आसषरी ने वो ही बुक निकाली व पढना शुरू किया

अगर कोई उस मंदिर मे प्रवेश कर ले तो मतलब उस मिंंदर ने आपको आने का अवसर दिया है लेक्नि एक बात स्मरण रखना भूलकर भी मंदिर की सीमा को पार मत करना, जिस पथ से तुम आये हो वहाँ एक स्थान ऐसा है जहाँ दोने ओर एक पुरूष की व दुसरी ओर एक स्त्री की मुर्त बनी है वहाँ से मदिंर का दायरा शुरू होता है लेक्नि उन मर्तियो को झाड़ियो ने ढक लिया है उस स्थान से यदी मंदिर को केन्द्र बना एक चक्र बनाये तो वह चक्र से सीमा बनती है वह सुरक्षा सीमा है भूल कर भी रात मे उसके पार न जाये , यदी कोई गया तो वो बच नही पायेगा बाहर राक्षसी जीव धूमते है और जब मंदिर से वापस जाये तो सूर्य निकलने के कुछ समय बाद ही निकले दोपहर मे न निकले यदी ऐसा नही माना तो कोई बच नही पायेगा

आरीका   -   बहुत जल्दी बता दिया आसषरी

ऐशवर्य   -    तो तुम्हे इन सब पर विश्वास है

सावरी   -   अपने चारो ओर देखो तुम्हे नही है

दुरमेशवर   -   जो भी है हमे सावधान रहना होगा

टाकष   -    चिंता कि् कोई बात नही है हम सीमा मे ही तो है

सावरी   -   आसषरी हम सब तुम्हारे साथ है तुम डरा मत करा करो लेक्नि आज से कोई बात छुपाना नही

ऐशवर्य   -   चलो अब खाना कौन-कौन खायेगा

टाकष   -    मै

ऐशवर्य   -   तो चलो बनाओ

सभी हसने लगते है
 

सब साथ मिल आग जलाते है और खाना पकाते है वह सब खुश थे कि् वो मंदिर आ पाये अब देखना यह है कि् यह जैसे आये है क्या जा भी पायंगे ?

 अगले दिन सभी सर्वप्रथम पूजन करने के बाद मंदिर का विश्लेषण करने लगे उन्होने वहाँ पर बनी चित्रकला की तस्वीरे खीची व आवश्यक लेख की भी फोटो खीची
ऐशवर्य ने अपने लेपटॉप मे सभी सूचनाए एकत्रित करी व साथ मे अपने लेख लिखे कि् उनको क्या लगता है उन्होने विडियो रिकॉर्डिगं आदि भी करी, यह सब ऐशवर्य ने एक फाइल मे -

                                             THE GREAT TEMPLE


              के नाम से सेफ कर ली

उन सब ने कई दिनो तक विश्लेषण किया व तथ्यो को जुटाया तत्पश्चात जो फाइल बनी वह अत्यन्त किमती थी ऐशवर्य ने उसे अपने पास सेफ रखा


                                                                         

                                 लेख

कई दिन हो गये थे और अब उन्होने लगभग सारी जानकारियाँ ले ली थी वह मंदिर का विश्लेषण कर ही पता चल रहा था कि् यह कोई सामान्य मंदिर नही है वह मंदिर के बारे मे जितना वर्णन करो कम है वो अदभुद था उसमे देवी-देवताओ का चित्रण था जिसमे वह उन दो यौद्वाओ को ज्ञान आदि दे रहे थे उसमे एक चित्र था जिसमे माँ दुर्गा, उन यौद्वाओ के समक्ष बैठ उन्हे ज्ञान दे रही थी माता ऊँचे आसन पर बैठी थी व वह दोनो नीचे, देवी चित्रण देख लग रहा था कि् वह मानो उन्हे कोई दुर्लभ ज्ञान दे रही है
                     वहाँ पर सब लेख या तो संस्कृत मे या किसी ऐसी भाषा मे लिखे थे जो मानव सभ्यता नही जानती है सभी देवीयों की मूर्तियाँ एक ही स्थान पर थी आसषरी व आरीका उनके पास खड़ी हो कर विश्लेषण कर रही थी तभी आसषरी की नजर माँ दुर्गा के चरणो पर जाती है उसमे एक लेख लिखा था वह ऐसी भाषा मे लिखा था जिसको मानव नही जानते थे वह हमारे काल की नही थी आसषरी उस लेख को छुती है आसषरी स्थिर हो जाती है व अचानक वह लेख पढने लगती है -

आसषरी -

मेरे चरणो मे मेरी संतानो के दिव्यास्त्र रखे है इनको वही ले पायेगा जो इनके लायक हो, इन अस्त्रो को वही खोज पायेगा जिसको वास्तव मे इनकी आवश्यक्ता हो
जिसको भी यह दिव्यास्त्र सर्वप्रथम मिलेंगे वह श्री गणेश से एक वर मांग सकेगा परन्तु उसे परीक्षा के रूप मे वह चीज अर्पण करनी होगी जो प्रत्येक मानव के पास होती है जिसका मानव को सदैव भय रहता है कि् कही वह छिन न जाये जिसका छिन्ना तय होता है जो प्रत्येक मानव को ज्ञात होती है कि् छिनेगी परन्तु फिर भी वह मान नही पाता


आरीका   -    आसषरी तुम ठीक हो

आसषरी होश मे आती है

आरीका   -    तुम ठीक हो ?

आसषरी   -   क्या हो गया था मुझे ?

आरीका   -   तुम ये लेख पढ रही थी, यह भाषा तुम जानती हो ?

आसषरी   -   नही

आरीका   -   तो तुमने यह पढा कैसे ?

आसषरी   -   मुझे नही पता

आसषरी   -   मैने क्या बताया था

आरीका उसे बता देती है

आसषरी   -   यह मैने कैसे पढा ?

आरीका   -    क्या यह हम सबको बताये ?

आसषरी   -   हमें सबको बता देना चाहिए

आरीका सबको बुलाती है और पूरी बात से अवगत करा देती है

ऐशवर्य   -   आसषरी तुमने सही मे यह भाषा कभी नही देखी

आसषरी   -   नही

दुरमेशवर   -   शायद देवी ने आसषरी को पढने की ईजाजत दी हो

टाकष     -   आसषरी जो यहाँ लिखा है तो मतलब यहाँ कोई अस्त्र है

ऐशवर्य   -   लेक्नि दिख तो नही रहे है

आरीका   -   अब हम क्या करे ?

टाकष   -   हमे यहाँ की जांच करनी चाहिए शायद वह यही हो सोचो हम उससे कितने अच्छे काम कर सकते है

ऐशवर्य   -   वह जिसको मिलने होंगे मिल जायेंगे लेक्नि तुम कह रहे हो तो ढुंढ लेते है

सभी ने हर प्रकार से खोज की लेक्नि कुछ मिला नही, सबने मान लिया कि् वह उनके भाग्य मे नही लेक्नि सोचने वाली बात थी यदी भाग्य मे नही था तो आसषरी ने वह लेख पढा ही क्यो ? क्या देवी उन्हे वह अस्त्र देना चाहती थी ? या वह  संकोच था




                    CHAPTER 7

            RULE OF SUVATRA

सभी ने लगभग सारी जानकारियाँ ले ली थी अब उनके जाने को समय आ गया था

उपेन्द्र   -   ऐशवर्य मेने सारा डाटा इस पेन ड्राइव मे डाल दिया है इसे तुम सेफ कर लो

ऐशवर्य   -   उपेन्द्र बाकी सब कहाँ है

उपेनद्र   -   पता नही वो तालाब की तरफ गये थे लो आ गये

सुवेन्द्र   -     ऐशवर्य काम पूरा हो गया ?

ऐशवर्य   -    बस आखिरी डाटा सेफ करना है

आरीका   -   ऐशवर्य पूरी फाइल तैयार कर हमे दिखा देना तभी हम चलने का विचार करेंगे

ऐशवर्य   -   जी जैसा आप चाहे, रात तक तैयार हो जायेगा

आसषरी   -   चलो सब जंगल मे धुमने चलते है

सभी मान जाते है व आसषरी के साथ जंगल मे चले जाते है श्याम तक ऐशवर्य अपना काम पूरा कर लेता है शाम की आराधना के बाद वह फाइल सबको दिखा देता है ऐशवर्य ने सूचना को इतनी उत्तम ढंग से संयोजित किया था कि् सभी खुश हो गये

ऐशवर्य    -   हमारा काम पूरा हुआ अब हमे धर चलना होगा

आरीका   -   ठीक है तो हम कुछ दिन और रूकेंगे, फिर हम चले जायेंगे

आसषरी - दोस्तो इतना आसान नही है हमें सूरज निकलने के बाद ही निकल जाना होगा

ऐशवर्य - हाँ सही कह रही हो

दुरमेशवर - क्यो ?

आसषरी   -    उस लेखक ने बताया है कि् बाद मे जाना खतरनाक है सीमा के बाहर दानव रहते है लेखक ने गलती करी थी और गलत समय पर निकला था उसके पीछे यह दानव आ गये थे वह कठिनाई से बचा था

दुरमेश्वर   -   ठीक है हम जल्दी निकल जायेंगे

सबने कुछ और दिन उस स्थान पर बिताये तत्पश्चात उन्होने जाने को निर्णय किया

उन्होने शाम को बैठ आपस मे खूब बाते करी वह सब आग के चारो ओर बैठे थे -

आरीका   -   टाकष तुम्हारी गन मेरे धनुष के आगे कुछ नही

टाकष   -   मजाक अच्छा कर लेती हो

सावरी   -   मैने कहाँ था न कि् वो हार नही मानेगा

आरीका   -   हार तो मान ही चुका है वो सबके सामने स्वीकार नही करना चाहता

ऐशवर्य   -   टाकष, आरीका ने कहाँ तुमने हार मान ली

टाकष   -   आरीका सपने अच्छे देखती हो
 
सुवेन्द्र   -   ये दोने फिर शुरू हो गये

उपेन्द्र   -   और क्या उम्मीद थी

दुरमेशवर   -   अच्छा और कोई बात करते है, अब हम ये जगह से चले जायेंगे तो इसके बाद कया ?

ऐशवर्य -   पता नही

सावरी   -   मैने भी कुछ सेचा नही है

आसषरी   -    हम ये मन्दिर का राज किसी को बता नही सकते

ऐशवर्य   -   क्यो ?

आसषरी   -   जरा देखो और सोचो सीमा के बाहर दानव बसते है ये एक खतरनाक जगह है

दुरमेशवर   -   सही कहाँ

उपेन्द्र     -   तो यह यात्रा केवल जिज्ञासा तक ही सीमीत रहेगी ?

सुवेन्द्र   -   जो भी है हमे इस स्थान के रास्ते को सेफ रखना होगा मतलब हमने जो फाइल बनायी है वो किसी अन्य के हाथ न लगनी पाये

ऐशवर्य   -   उसकी चिन्ता मत करो

आसषरी   -   यह जरूरी है कि् हम सब इसकी गम्भीरता को समझे, इसको सुरक्षित रखना ही परम कर्तव्य है

सावरी   -   सही है

आसषरी   -   मै तुम सबको कैसे बताउ ?, कि् तुम कितने अच्छे हो तुम सबने मेरी यहाँ तक मदद करी


सावरी   -   कैसी बाते कर रही हो

आरीका   -   हम आखिरी दम तक तुम्हारे साथ है
 
सुवेन्द्र   -    आसषरी अगर तुम्हे या किसी को भी कुछ हो जाये तो मै धर वापस नही जाउंगा साथ मे ही प्राण त्याग दुगां

आरीका   -   मै भी, हम सब अलग नही एक है हम नौ एक-दुसरे के साथ है

टाकष   -   जब तक मेरे मे जान है मै तुम सबकी रक्षा करूंगा

आसषरी   -   तुम दोस्तो को पाकर मै जीवन मे खुश हुँ

आरीका   -   आसषरी हम सब तुम्हारे पास ही रहेंगे

सभी आपस मे मिल बाते कर रहे थे वह खुश थे कि् वह साथ थे लेक्नि वक्त शायद उनकी परिक्षा लेने वाला था

अगले दिन सभी तैयार हो गये वह सूर्य उदय के थोड़ी देर बाद निकल ही रहे थे कि् तभी आसषरी गिर जाती है उसके पाव से खून निकलने लगता है सभी रूक जाते है वह आसषरी के पास जाते है -

आरीका   -   क्या हु
आ ?

आसषरी   -   मै गिर गयी

सावरी   -   दिखाओ ज्यादा चोट तो नही आयी

सावरी आसषरी का पाव देखती है उसमे से खून निकल रहा होता है

टाकष   -   रूको मै पटटी देता हुँ

टाकष उसके पाव को साफ कर पटटी कर देता है

आरीका   -   तुम चल पाओगी

आसषरी   -   हाँ

आसषरी उठती है लेक्नि फिर से गिर जाती है

टाकष   -   हमे रूकना होगा

सावरी  -   ठीक है हम थोड़ी देर रूक जाते है

वह सब आसषरी के पास बैठ जाते है वह आसषरी के ठीक होने का इंतजार करते है लेक्नि आसषरी के काफी दर्द हो रहा था वह आसषरी को पेन कीलर का इंजेकशन दे देते है वह मन्दिर मे लेट आराम करने लगती है आसषरी को निन्द आ जाती है उसकी आँख दोपहर बारह बजे खूलती है

सावरी   -   सब यहाँ आओ आसषरी को होश आ गया

सभी आ जाते है

टाकष - तुमने तो हमे डरा दिया

दुरमेशवर   -   ठीक हो ?

आसषरी   -    हाँ

सावरी   -   तुम चल सकती हो ?

आसषरी   -   हाँ

आसषरी उठ जाती है व धीरे ही लेक्नि चल रही थी

आसषरी   -   समय कितना हो गया है ?

सावरी     -   दोपहर हो रही है
 
आसषरी   -   हमे अभी नही जाना चाहिए

टाकष   -   मै क्या कहु सुवेन्द्र से बात करो

सुवेन्द्र - हमे निकलना होगा हम रूक नही सकते

उपेन्द्र   -   चिन्ता मत करो हमे कुछ नही होगा

आसषरी ने उन्हे मना किया लेक्नि वह माने नही अन्त मे आसषरी को उनकी बात माननी पड़ी

आसषरी   -     ठीक है मै चलती हुँ लेक्नि मै माँ के दर्शन कर आऊ

आसषरी जा माँ दुर्गा की मूर्त के आगे जा सिर झुकाती है व माथा टेकती है वह उठ मुड़ जाने लगती है तभी उसका हाथ मे बंघा ब्रेस्लेट माँ की पायल मे फंस जाता है वह पायल पत्थर की थी आसषरी उसे छुड़ाने लगती है तभी आरीक, आसषरी को देखती है आरीका को दिखा कि् आसषरी अपना ब्रेसलेट निकाल रही है वह पास आ मदद करती है

आरीका   -   आसषरी मुझे देख के लग रहा था कि् मानो माँ तुम्हारा हाथ पकड़ रोक रही हो

आसषरी   -    तो क्या करे ?

आरीका   -   यह मानने नही वाले

आरीका   -   चिन्ता मत करो मै तुम्हे कुछ नही होने दुंगी

सभी उस स्थान से निकल जाते है

 अंधेर मे भयानक जीव का हमला

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वह लोग मंदिर से चले गये वह सब पेदल चलकर सीमा के पार आ गये तब तक दोपहर के तीन बज चुके थे फिर वह धाटियो से कारो के पास गये, वह सब अपनी गाड़ियो मे बैठ कर धाटी से बाहर की ओर जाने लगे जाते-जाते उन्हे रात हो गयी वह जंगल में पहले ही कम रोशनी आती थी अब तो अंधेरा हो गया था, उनके सामने सीधा रास्ता था और दोने ओर भयानक जंगल था सबसे आगे वारकी की गाड़ी थी वह ही सबको गाइड कर रहा था उसके साथ टाकष और ऐशवर्य तथा दुरमेशवर थे उसके पीछे वाली गाड़ी मे आसषरी , सावरी तथा आरीका थे तीसरी गाड़ी मे उपेन्द्र व सुवेन्द्र थे
                  वह सब आपस मे बात करते हुए जा रहे थे वह खुश थे लेक्नि ज्यादा देर ऐसा होने नही वाला था

सावरी   -   आसषरी तुम्हारा पैर कैसा है ?

आसषरी   -   ठीक है

सावरी   -   चिन्ता मत करो हम जल्द ही शहर मे होंगे

दुसरी आरे टाकष लोग भी आपस मे बाते कर रहे थे -

टाकष   -   तुम तो लगता है डर गये

वारकी   -   मै नही डरता

टाकष   -   पता है डरा कौन लग रहा है ?

वारकी   -    कौन ?

वारकी - मुझे पता है तुम मुझे कह रहे हो

तभी उनकी गाड़ी के आगे कोई आ जाता है वह एक इंसान था उस आदमी की हाईट आठ फीट तक थी उसने जानवर की खाल पहनी थी वारकी उसे देख हेरान हो जाता है -

वारकी   -   ये कौन है ?   

इतना कह, वह ब्रेक लगाता है लेक्नि तब तक देर हो जाती है तभी वह आदमी जानवरो की तरह आवाज निकालता है वह रूप परिवर्तित करता है वह एक विशाल आदमखोर भेड़िये मे बदल जाता है
                                   वारकी की गाड़ी उससे टकराती है भेड़िया अपने हाथों से तेज गति की गाड़ी को रोक लेता है वह खुंखार जानवर था वह हाथो से गाड़ी के दो टुकड़े कर सड़क के दोनो ओर फेक देता है सावरी व सभी की नजर उस पर पड़ती है वह हैरान हो जाती है व अपने वाहन वही रोक देते है वह भेड़िया टाकष की ओर आ आवाज निकालता है टाकष व अन्य अपनी सीट बेल्ट खोल निकलते है वह भेड़िया हमला कर देता है टाकष अपनी गन निकाल उस पर फायरिंग कर देता है लेक्नि उस पर कोई असर नही होता है टाकष की सारी बुलेट खत्म हो जाती है वह हैरान हो जाते है टाकष अपनी गन फिर से भरने लगता है उस भेड़िये के धाव ठीक होने लगते है सभी हैरान हो जाते है -

सावरी     -   ये है कौन सा जीव ?

आसषरी   -   हम बहुत बड़ी मुसीबत मे फंस गये है ये दानव है

आरीका   -   जो भी है अब ये बचेंगा नही

आरीका दरवाजा खोल गाड़ी की छत पर बैठ अपना धनुष निकाल लेती है व भेड़िये पर निशाना लगाती है
                                    वह भेड़िया टाकष पर झपटता है तभी आरीका के बाण आ भेड़िये के हाथ - पैर व छाती पर लगते है, वह बाणो के आगे की नोक चाँदी की थी उनसे भेड़िया धायल हो जाता है तब तक टाकष अपनी गन मे चाँदी की गोलीयाँ भर लेता है वह ऐशवर्य को किनारे हटा गोलीयां चला देता है वह भेड़िया गिर जाता है तभी देशमुख चाँदी की तलवार निकाल उस भेड़िये का सर काट देता है सभी टाकष आदि के पास आते है -

सावरी   -   जल्दी गाड़ी में बैठो

सभी गाड़ी मे बेठ गये वह जल्द से जल्द जंगल से बाहर आना चाहते थे लेक्नि ये इतना आसान नही था

सावरी   -   वो था क्या ?

देशमुख - वो जो भी था मर चुका है

आरीका   -   इतना आसान नही है उसके चिल्लनो से पता चल रहा था कि् वह किसी को बुला रहा है

आसषरी   -   यह भेड़िये झुंड मे रहते है

आरीका   -   और तुम्हारी गोलीयां का असर क्यो नही हो रहा था ?

देशमुख   -   क्यो कि् वो चाँदी की नही थी जब चाँदी की गोलीयां चलायी तब वो कमजोर हुआ

आसषरी   -    अब क्या ?

आरीका   -   बस यहाँ से बाहर निकलना है

टाकष    -   चिंता मत करो हम जल्द ही शहर मे होंगे

तभी उनकी गाड़ी के आगे कई भेड़िये आ जाते है

टाकष   -   आरीका देखो

आरीका   -    चलाते रहो

दोनो गाड़ी भेड़ियो को टककर मार आगे निकल जाती है

टाकष - अब चलते रहो

वह कुछ दुर चलते है लेक्नि तभी उनकी गाड़ीयों के टायर फट जाते है उन्हे गाड़ी रोकनी पड़ती है

सावरी    -   अब क्या ?

आरीका   -   हमें पेदल चलना होगा वह सब पेदल भागने लगते है तभी वह देखते है भेड़ियां का झुडं आगे होता है वह रूक जाते है व जंगल मे चले जाते है

सावरी   -   सड़क पर तो वो है

आरीका   -   वह आगे ही होंगे

ऐशवर्य   -   कुछ भी हो हम रूक नही सकते

सुवेन्द्र   -   हमें चलते रहना होगा

वह जंगल मे होकर आगे चलते है परन्तु वह कुछ दुर ही आते है कि् एक भेड़ियां पेड़ से कुद वारकी पर हमला कर देता है वह वारकी को फाड़ देता है व उसका मांस खाने लेता है सब हैरान हो जाते है देशमुख तलवार निकाल भेड़िये का सर काट देता है

आरीका   -   वारकी

सावरी   -   ये क्या हो गया

सब रोने लगते है वह वही मानो ऐसे हो गये कि् उनका सब कुछ मिट गया हो

टाकष   -   अपने आप को सम्भालो हमे चलते रहना होगा

आरीका   -   हम आगे नही जा सकते ध्यान से सुनो उन भेड़ियो की आवाजे आ रही है

आसषरी   -  हमे सीमा मे जाना होगा

आरीका   -   सही कहाँ
 

टाकष   -   तो जल्दी चलो

वह सब जंगल के रास्ते सीमा की ओर जाते है वह भाग रहे थे बिना कुछ सोचे समझे

सुवेन्द्र   -   हमे जैसे भी सीमा मे जाना होगा

तभी अचानक एक भेड़िया हमला कर देता है वह सुवेन्द्र का पेट फाड़ देता है टाकष गन से उसके शरीर को भुन देता है

सुवेन्द्र   -    मै नही बच पाउंगा तुम जाओ

इतना कह वह मर जाता है सभी रोने लगते है सब दुखी थे सब सुवेन्द्र के पास ही बैठ जाते है वह सुदबुद खो चुके थे परन्तु फिर वह अपने आप को सम्भालते है वह सीमा की ओर बढते है वह जंगल भयानक था वहाँ अंधेरा बहुत ज्यादा था वह सब पेड़ो के बीच से होकर जा रहे थे ताकि् कोई भेड़िया उन्हे देख न पाये चलते-चलते उनके साथ कुछ अजीब होता है उनके सामने एक पेड़ आता है वहाँ एक लड़की खड़ी थी वह पेड़ की ओर मुँह करे थी, उसने कुछ विचित्र पोशाक पहनी थी जो आकर्षक लग रही थी उसके बाल लम्बे व सुन्दर थे उसकी स्कीन प्योर वाइट थी उसने नीले रंग के वस्त्र पहने थे वह उसको देख सावधान हो जाते है आरीका अपना धनुष तान लेती है टाकष उसकी ओर गन कर लेता है व देशमुख अपनी तलवार निकाल लेता है -

आरीका -    अपना परिचय दो नही तो मे बाण संधान कर दुंगी

देशमुख   -    कौन हो तुम ?

वह लड़की धुमती है वह इतनी सुन्दर थी कि् उससे नजर नही हटे उसकी नीली पोशाक व नीली आँखे आकर्षित कर रही थी उसके होट खून की तरह लाल थे वह नंगे पाव थी वह उन्हे देख मुस्कुराती है

लड़की   -   मेरा नाम साव्रती है मुझे अपना दोस्त समझो

आरीका   -   एक कारण बताओ की मै इस चाँदी के बाण से तुम्हे मार न दु

साव्रती   -   क्यो कि् उसके बाद तुम यहाँ से उन भेड़ियो से बच के नही जा पाओगी

देशमुख   -   खुल कर बात करो

साव्रती   -   खुल कर ही कह रही हुँ मेरी जान, मै तुम्हे यहाँ से निकलने का रास्ता बता सकती हुँ

आसषरी   -   अपना परिचय दो

साव्रती   -   मैरा नाम साव्रती है मै भी तुम्हारी ही तरह हुँ मैने तुम लोगो की आवाज सुनी तो आ गयी

आरीका   -   अच्छा तुम इस जंगल मे क्या कर रही हो क्या तुम्हे भेड़ियो से डर नही लगता ?

साव्रती   -   वो मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते, मै उनकी तरह बुरी नही मै यहाँ आने वाले सभी की मदद करती हुँ मै इसी जंगल मे रहती हुँ, यही मेरा धर है मेरी बात मानो वो आते ही होंगे ज्यादा देर रूकना सही नही है मेरे पीछे आओ

वह उसी दिशा मे दोबारा जाने लगते है सबसे आगे साव्रती चल रही थी

आरीका -    मुझे इस पर भरोसा नही, नजर रखना

वह उसके पीछे-पीछे चलने लगते है वह अजीब रास्तो से ले जा रही थी तभी कुछ अजीब होता है उनके दाये ओर से किसी की आवाज आती है जैसे कोई झाड़ियो मे चल रहा हो

देशमुख   -
   आवाज सुनी ?

साव्रती   -   उस जगह जाना मत, अगर गये तो बच नही पाओगे


लेक्नि तभी आवाज बढ जाती है

आरीका   -   यह आवाज तो हमारे पास ही आ रही है

सावरी   -   हमे देखना चाहिये

सब उस आवाज के पीछे जाते है वह दायी ओर गहरे जंगल मे जाते है वहाँ वह जो देखते है उनको विश्वास नही होता है वहाँ एक जीव था, वो जानवर भयानक था जो चार पेरो पर चल रहा था उसका शरीर काला था उस जानवर को उन्होने पहले कभी नही देखा था

सावरी   -   आरीका बाण संधान करो

वह जानवर पलटता है व तुंरत हमला कर देता है टाकष गन निकाल प्रहार करता है तभी वह टाकष पर झपटता है अचानक वहाँ साव्रती आ जाती है वह जानवर को उठा फेक देती है वह इतने प्रहार से फेकती है कि् वह पेड़ से टकरा बेहोश हो जाता है

साव्रती   -   मैने कहाँ था न

साव्रती   -   अपने आप को सम्भालो वो हमारे पीछे ही है

साव्रती उन्हे समझाती है व अपने साथ आगे ले जाती है वह सब टुटे दिल व दुखी मन से आगे चलते है

साव्रती   -   यह जंगल खतरनाक है जल्दी मेरे पीछे चलो

वह आगे जाने लगते है तभी वहाँ किसी के रोने की आवाज आती है वह कोई स्त्री के रोने की आवाज थी मानो उसके साथ कुछ बुरा हो गया हो

आरीका   -   यह आवाज कैसी ?

साव्रती   -   मुझे नही पता

टाकष   -   लगता है कोई मुसीबत मे है

आरीका   -   जो भी हो मै ऐसे नही जा सकती

सावरी   -   इस आवाज का पीछा करो

वह उस आवाज का पीछा करते है वह अंधेरे जंगल मे चले जाते है वहाँ उन्हे एक औरत दिखती है वह पेड़ के पास बैठ मुँह नीचे कर रो रही थी उसने सफेद कपड़े पहने थे उसके बाल लम्बे थे वह बहुत बदसूरत थी

आरीका   -   कौन हो तुम रो क्यो रही हो ?

सावरी   -   मुझे नही लगता हमे यहाँ होना चाहिए

औरत -   मै रो रही हु क्योकि् तुम सब मरने वाले हो, तुम्हारी मौत पर मै ताडंव करूंगी

वह औरत जोर-जोर से हँसने लगती है तभी सबकी नजर उसके पाव पर पड़ती है उसके पाव उल्टे थे

सावरी   -   ये डायन है
 

आरीका   -   सावधान यह डायन है

तभी वह उठ अपना जादू चलाती है व सबको स्थिर कर देती है

डायन   -   तुम्हारे ये चाँदी के हथियार मेरे उपर असर नही करेंगे

तभी साव्रती लकड़ी ले उसे पीटना शुरू कर देती है वह उठ दूर भाग जाती है सब ठीक हो जाते है वह गहरे अंधेरे मे जा हँसने लगती है -

डायन   -   तुम्हारी मौत पर मै हसुंगी
 

साव्रती   -   जाती है कि् मारू चल भाग

डायन   -   मै तो जा रही हुँ लेक्नि याद रखना ये जंगल राक्षसो और छलो से भरा हुआ है

इतना कह वह चली जाती है साव्रती उन्हे दोबारा सीमा की ओर ले जाने लगती है साव्रती उन्हे सीमा के पास ले जाने लगती है -

साव्रती   -   अब सीमा थोड़ी ही दूर है

आरीका   -   ठीक है

वह सब आगे जाने लगते है तभी भेड़िये आ जाते है सभी सावधान हो जाते है -

आरीका   -   सावधान भेड़िये आ गये
 

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आरीका धनुष निकाल लेती है टाकष गन निकाल लेता है वह दोने उन पर प्रहार करते है आरीका ने भेड़ियो को तीरो से धायल कर दिया टाकष ने गोलियां चला उनको मार दिया
 वह संख्या मे ज्यादा थे फिर भी सब डट कर सामना कर रहे थे कई भेड़ियो को वह मार देते है तभी अचानक एक भेड़िया आ ऐशवर्य पर हमला कर देता है वह ऐशवर्य की छ़ाती फाड़ देता है दुरमेशवर भेड़िये को पीछे से उठा दुर फेक देता है आरीका उसे बाणो से मार देती है

ऐशवर्य   -    सावरी सुनो मेरा ये बैग लो इसमे मेरी मेहनत है इसमे मेरा लेपटॉप है जिसमे फाइल है इसे गलत हाथो मे मत लगने देना अब जाओ यहाँ से

आसषरी   -   लेक्नि

ऐशवर्य   -   मैने कहाँ तुम सब जाओ यहाँ से अगर कभी कुछ माना है तो मेरी बात सुनो और जाओ

इतना कह वह मर जाता है आरीका व टाकष सभी भेड़ियो को मार देते है लेक्नि ये काफी नही था अभी भेड़ियो की और आवाजे आ रही थी

साव्रती   -   चलो हमे चलना होगा

साव्रती सबको आगे ले जाती है वह पूरा दम लेकर भाग रहे थे उनका एक लक्ष्य था सीमा

आसषरी   -   आरीका तुम्हारे पास कितनी तीर है

आरीका   -   मेरे पास ज्यादा बाण नही है

टाकष   -   मेरी गोलिया भी थोड़ी ही है

तभी भेड़िये आ जाते है वह उन्हे धेर लेते है आरीका व टाकष डट कर सामना करते है साव्रती दो भेड़ियो का दिल निकाल मार देती है आसषरी के पास भेड़िया आता है वह उसे चाकू से उसे अंधा कर उसके जबडे मे चाकू मार देती है देशमुख तलवार निकाल भेड़ियो के सर काट देता है लेक्नि वह भेड़िये ज्यादा थे

देशमुख   -    तुम जाओ मै इनको रोकता हुँ

सावरी   -   मै नही जाउंगी

देशमुख   -  मैने कहाँ जाओ अगर नही गये तो मै स्वयं को मार लूगां

साव्रती   -   वो सही कह रहे है

आरीका   -   मै नही जाउंगी

देशमुख    -     आरीका जाओ ज्यादा समय नही है

देशमुख उन्हे धक्का दे हटा देता है वह न चाहते हुए भी वहाँ से चले जाते है देशमुख तलवार ले प्रहार करता है

देशमुख   -   आज तुम नही बचोगे

वह अपनी तलवारो से कईयो को मार देता है उसकी तलवार तेज गति से चल रही थी वह भेड़ियो को अंधाधुध मारता है उसे देख लग रहा था कि् मानो यह बात सही हो कि् हिम्मत बड़ी चीज है वह भेड़ियो की संख्याअघिक हो जाती है देशमुख की तलवार गिर जाती है तपश्चात भेड़िये आसषरी आदि का पीछा करते है आसषरी आदि को भेड़ियो की आवाजे आती है

उपेन्द्र    -   तुम जाओ मै इन्हे देखता हुँ

आरीका - नही

उपेन्द्र   -   बात को समझो और जाओ

सावरी   -  नही अब जो भी हो हम साथ मै रहेंगे चाहे मरे या जीये

उपेन्द्र   -   हमे मरना नही है जीना है अगर मै अपना त्याग कर तुम्हे जीवन दे सकता हुँ तो मै पीछे नही हटुंगा

सावरी    -   नही


उपेन्द्र   -   हमने जो खोज करी है वो किसी ने नही करी यह बात किसी को तो पता हो हम सब यहाँ नही मर सकते तुम अगर मुझे कभी दोस्त मानते थे तो चले जाओ, अब जाओ

साव्रती   -   चलो वो सही कह रहे है

आसषरी   -   तुम गलत हो उपेन्द्र ये सब मेरी गलती है

उपेन्द्र उन्हे आगे भेज देता है व अकेले खड़ा हो जाता है भेड़िये, उपेन्द्र के पास आते है

उपेन्द्र   -  आ जाओ बेटा


भेड़िया, उपेन्द्र पर झपटता है उपेन्द्र उसे जबड़े से पकड़ उसका मु़ँह फाड़ देता है तभी अन्य भेड़िये हमला करते है देशमुख एक को अंधा कर उसका जबड़ा निकाल लेता है वह कइयो को मारता है लेक्नि जल्द ही भेड़ियो की संख्या अघिक हो जाती है वह भेड़िये उसे धेर के मार देते है
दूसरी ओर आसषरी व अन्य सीमा की ओर भाग रहे थे

साव्रती   -  सीमा पास ही है

आरीका वो भेड़िये पास ही है आरीका रूक जाती है तभी पीछे से भेड़िये आ जाते है आरीका बाणो का संधान कर देती है टाकष गन निकाल चलाने लगता है

टाकष   -   आरीका सबको ले जाओ तुम्हारे तीर कम है मै इन्हे रोक के रखता हुँ

सावरी   -   नही अब बचा ही कौन है जाने के लिए हमारे आधे साथी तो मर ही गये है


टाकष    -   हम सबको मरना नही है हम दोस्तो मे कोई तो बचे आसषरी व सावरी तुम्हारी जिम्मेदारी है

साव्रती   -   अब चलो

टाकष   -   आरीका मै तुमसे व सभी से बहुत प्यार करता हुँ अब जाओ

सभी रोने लगते है साव्रती उन्हे ले जाती है वह सीधे सीमा की ओर जाते है

    दुसरी ओर टाकष सभी दानवो का इन्तजार करता है उसके हाथो मे गन्स थी जिनमे चाँदी की गोलिया थी भेड़िये तेज गति से उसकी ओर आते है वह इतने भयानक लग रहे थे कि् कोई देख कर ही मर जाये
               टाकष गन उठा फायर करता है वह भेड़ियो को मारता है उसकी बूलेट जा भेड़ियो की छाती पर लगती है वह वीरता से सामना करता है उसके पास जब तक गोलिया थी वह डट कर मुकाबला करता है वह काफी समय दे देता है भागने के लिए, अचानक उसकी गोलिया खत्म हो जाती है भेड़िये उसकी ओर आते है वह चाकू निकाल भेड़ियो की आँखो मे मारता है व उन्हे नेत्र हीन कर देता है तत्पश्चात वह चाकू से अन्य भेड़ियो पर प्रहार करता है वह वीर था वह अकेले ही कई को मार देता है लेक्नि वह था तो एक अठाराह वर्ष का नवयुक ही भेड़ियो संख्या अघिक हो जाती है भेड़िये उसे धेर लेते है वह उसे नोच कर खा जाते है
                  साव्रती उन्हे सीमा की ओर ले जाती है अब केवल कुछ ही लोग रह गये थे वह दुखी थे लेक्नि फिर भी सीमा की ओर जा रहे थे   सभी थक जाते है वह थोड़ा रूक आराम करने लगते है

आसषरी   -   मन तो कर रहा है उन भेड़ियो को मार दु

आरीका   -     लेक्नि कैसे ? हमारे पास ज्यादा हथियार नही है

साव्रती   -   हमे चलना होगा वो आते ही होगें

सावरी   -   मेरे से नही चला जायेगा

साव्रती -   कोई नही विश्राम कर लो

आरीका व आसषरी थोड़ी आगे चली जाती है सावरी पेड़ के पास बैठ जाती है साव्रती उसके पास खड़ी थी तभी सावरी की नजर साव्रती पर पड़ती है उसकी स्कीन प्योर वाइट थी व आँखे नीली उसके अन्दर भय नही था, सावरी को डायन की बात याद आती है कि् ये जंगल दानवो और छलो से भरा है
             
          सावरी उसका हाथ पकड़ कर उठती है उसका हाथ बिलकुल ठण्डा था सावरी को सब समझ मे आ जाता है -

सावरी   -   तुम इंसान नही हो सकती कौन हो तुम ?

साव्रती  -   पहचाना भी तो कितनी देर मे, मै एक पिशाच हुँ

सावरी   -   तो हमारी मदद क्यो कर रही हो ?

साव्रती   -   मै कहाँ मदद कर रही हुँ मुझे तो केवल तुम्हारा खून पीना है

वह अचानक सावरी पर हमला करती है व उसका खून चूस लेती है तभी अचानक भेड़िये आ जाते है साव्रती, आरीका व आसषरी के साथ भागती है वह उन्हे दूर ले जाती है तभी आरीका की नजर सावरी को ढुंढती है

आरीका   -   सावरी कहाँ है

साव्रती   -   वो मारी गयी

आरीका   -   क्या ?

साव्रती   -   हाँ उन भेड़ियो ने उसे मार दिया

आरीका   -   रूको, मैने उसे तुम्हारे साथ देखा था कहाँ है वो ? बताओ

आरीका धनुष तान लेती है

आरीका   -   बताओ नही तो मै मार दुंगी

साव्रती   -   तो सुनो, मै एक पिशाच हुँ और तुम मरने वाले हो

साव्रती की आँखे काली हो जाती है व वह वैम्पायर रूप मे आ जाती है

साव्रती   -   यहाँ सुवात्रा का राज है

आरीका   -   तुमने हमे गलत रास्ता दिखाया ?


साव्रती   -   नही हम पिशाच झुठ नही बोलते मैने रास्ता
सही दिखाया लेक्नि तुम वहॉ जा नही पाओगी

आरीका   -   आसषरी तुम जाओ मै इसे देखती हुँ

आसषरी   -   नही मै नही जाउंगी

तभी भेड़िये आ जाते है आरीका प्रहार कर, साव्रती को दूर गिरा देती है वह बाण निकाल भेड़ियो पर चलाती है वह सभी भेड़ियो को बाणो से मार गिराती है लेक्नि दुख की बात थी कि् आरीका के बाण खत्म हो जाते है

आरीका   -   आसषरी चलो

तभी वहाँ और भेड़िये आ जाते है आरीका उन्हे देखती है तभी पीछे से साव्रती आ उसके गले पर काट लेती है आरीका हार नही मानती है वह साव्रती के बाल पकड़ लेती है

आरीका   -   आसषरी तुम जाओ तुम्हे जिन्दा रहना है अब जाओ तुम्हे मन्दिर जाना है जाओ जा के हम सबकी ओर से देवी की अराधना करना ताकि् हम सबको जन्नत मिल सके, अब जल्दी करो मे ज्यादा देर तक नही रोक सकती, मै तुम्हारे पाव पड़ती हुँ तभी एक भेड़िया आ आरीका पर प्रहार करता है आसषरी उसकी आँख मे चाकू भोक देती है वह मर जाता है


आरीका   -   अब शीध्र करो अगर तुम नही गयी तो हमारे माता-पिता को कौन बतायेगा कि् हमारा क्या हुआ अब जाओ

आरीका, आसषरी को धक्का दे देती है, आसषरी न चाहते हुए वहाँ से चली जाती है वह सीधे बिना रूके जाती है पीछे आरीका लड़ते हुए मर जाती है साव्रती व सभी बुरी शक्तियां आसषरी के पीछे थी आसषरी दौड़ते हुए अपने पीछे आ रहे दानवो की आवाजे सुन रही थी लेक्नि तब भी वह भागती जाती है पीछे से भयानक आवाजे आ रही थी जिसको सुन कर ही आम आदमी धबरा जाये वह ऐसे जीव थे जिनको आसषरी ने पहले कभी नही देखा था भागते-भागते आसषरी गिर जाती है उसके पैर का धाव फॅट जाता है उसमे से खून निकलने लगता है वह झाड़ियो के पास गिर जाती है आसषरी पीछे मुड़ कर देखती है तो हैराना हो जाती है उसकी ओर भेड़िये, साव्रती, डायने व भूत आ रहे थे

         वह इतना भयानक द्रश्य था कि् बताया न जा सके आसषरी कुछ नही करती है व वही रूक जाती है वह सब भयानक आवाजे करते हुए उसकी ओर आते है आसषरी समझ गयी कि् वह नही बच पायेगी वह वही रूक जाती है वह एक लकड़ी उठा हाथ मे रख सामना करने का प्रयास करती है

लेक्नि वहाँ कुछ आश्चर्यचकीत करने वाली धटना होती है वह सब आसषरी के बिलकुल पास आ रूक जाते है अचानक वह डरने लगते है उन झाड़ियो मे से रोशनी निकलती है जो उन्हे जलाने लगती है वह सब जलने लगते है आसषरी हैरान थी उसे लग रहा था कि् उसके हाथ मे जो लकड़ी है वो उससे डर रहे है वह सब वापस भाग जाते है आसषरी की सांसे तेज चल रही थी तभी वह झाड़ियो की ओर देखती है उसे कुछ अजीब लगता है तभी वह झाड़ियां खुद ही हट जाती है उन झाड़ियो मे एक मूर्त थी वह उस रास्ते के दूसरे किनारे देखती है उसे वहाँ भी एक मुर्त दिखती है वह झाड़ियां उन मुर्तियो से हट उनके पैरो के चारो ओर धेरा बना लेती है वह मूर्तियां चमकने लगती है वह जिसके पैरे मे गिरी थी वह उस ही पुरूष यौद्वा की मूर्त थी दूसरी ओर स्त्री यौद्वा की मूर्त थी, वह वो ही यौद्वा थे जिनका चित्रण मन्दिर मे था आसषरी समझ जाती है कि् मन्दिर की सीमा शुरू हो गयी है

                वह उस मुर्त के पैरो मे गिर रोने लगती है वह मुर्त और किसी की नही बल्कि माँ दुर्गा के उन्ही यौद्वाओे की थी उनके एक हाथ मे भाले थे व दुसरे हाथ से, वह आर्शीवाद दे रहे थे वह समझ गयी कि् मन्दिर की सीमा यही है उनके मुहँ पर मुसकुराहट थी व छाती गर्व से चौडी थी उन्हे देख के आसषरी को लगा जैसे की कोई वीर उसे बचाने आ गये हो उन्हे देख कर लग रहा था कि् मानो वह इतने बलवान थे कि् एक झटके मे सभी दानवो का नाश कर सकते हो आरीका हिम्मत हार चरणे मे गिर रोने लगती है
                                                                 
                                                                                                                                                        समाप्त

                                                                                                                     लेखक - आकाश सिंह राजपूत


यह बुक पहला भाग थी जल्द ही
दुसरी बुक आयेगी

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                                                   धन्यवाद