इस दुर्गा लेख मे समय के विभिन्न पहलुओ का वर्णन हुआ है इसमे बाताया गया है कि् समय कितनी अदभुद चीज है इससे आप सोचेंगे कि् समय कितनी अदभुद व अनोखी चीज है



  समय
 
 

 


समय वो है जिसमे हम जीते है यह वो नही जो हम विचारो मे आभास करते है यह तो वो है जो हम जीते है आज जो हम जी रहे है वो समय है कल जो जी चुके वो समय है व जो कल आने वाला है वो भी समय है यह है तो एक ही, परन्तु यदी प्रकारो मे बाटा जाये तो यह अलग है वर्तमान, भूत व भविष्य,
           यह था सम
य का सूक्ष्म विवरण यदी इसे समझ ले तो जीवन सरल हो सकता है परन्तु इससे पहले हम इसके अदभुद पहलु देखते है


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समय तथा भूमि

 


 
समय व भूमि दोनो ही ईश्वर की देन है यह दोनो है जो सदा ही अस्तित्व मे रहेंगी परन्तु इन दोनो के सहयोग से एक परिस्थिति का जन्म होता है यह ही है जो हमे रुक कर सोचने पर मजबूर करती है कि् यह तो कभी सोचा ही नही
 
 समय एक ऐसी चीज है जो सदैव चलता रहता है यह अपने साथ इंसानो आदि मे भी परिवर्तण लाता रहता है व अन्त मे मानव समय के साथ इस लोक से किसी दुसरे लोक मे चला जाता है
              
    समय, मानवो को बदलता रहता है मनुष्य इस धरा को जितने का सोचता है व इस पर अघिकार भी कर लेता है परन्तु यह सदा एक सा नही रहता अर्थात अधिकार बदलता रहता है पीढी दर पीढी, एक से दुसरे के पास लेक्नि मानव इसे रुक कर कभी सोचता नही है इस भूमि पर कितनो का ही अघिकार रहा राम जी, कान्हा जी, रावण, वीभीषण, कौरवो, पाण्डवो, अकबर, महाराणा प्रताप, यह सबने इस भूमि पर अपना अधिकार प्राप्त किया परन्तु कई ने जन कल्याण हेतु किया व कईयो ने स्वयं की आकांशा पूरी करने हुतु जैसे राम जी आदि ने जन कल्याण हेतु राज किया व उदाहरण दिया कि् मानव को कैसा शासन करना चाहिए परन्तु जैसे एक वस्तु पर किसी एक का ही अधिकार होता है तो वास्तव मे यह भूमि पर किसका अधिकार है इन सभी ने ही अधिकार प्राप्त किया है यह बात यदी सोची जाये तो अलग सोच उत्पन्न होगी

 
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वास्तव मे यह भूमि पर सबका अघिकार रहा है परन्तु समय के साथ अधिकार बदलता रहा, जगह एक है लेक्नि समय नामक नियोजन तंत्र ने ऐसा नियोजन किया है कि् जगह एक है लेक्नि उसमे कई अधिकार बाटे, व हर अधिकार ने एक नई कहानी या महाकाव्य को जन्म दिया
        
 रामायण काल मे रामायण महाकाव्य को, कान्हा के काल मे महाभारत काव्य को, आगे चल कर पृथ्वीराज रासो आदि हुई इन सबमे एक ही चीज का वर्णन जरुर है वो है भूमि का इन सबमे बाताया कि् यह भूमि पर किसका अधिकार है लेक्नि ईश्वर के बनाये समय ने ऐसा नियोजन किया कि् एक ही चीज मे कितनो को सन्तुष्ट कर दिया वास्तव मे ईश्वर सबसे उत्तम नियोजन कर्ता है अब बात आती है कि् हमें इससे क्या सीख मिलती है ?

मनुष्य को सीख

 
इस लेख में मनुष्य को यह सीख दी गयी है कि् भू-लो मे  आ मनुष्य को इस भूमि पर अपना अधिकार करने का मन करता है मनुष्य जीवन भर इसे प्राप्त करने मे रह जाता है व जब यह कर लेता है तो वह बूढा जाता है तब जब उसका अन्त समय आता है तो किसी पेड़ को देख व इस जहां को देख उसके मन मे आता है कि् यह कितना सुन्दर है तब शायद यदी वह बैठ कर बसंत की धूप मे आनन्द लेता  है तो उसे पता चलता है कि् मैने तो कभी इस सुन्दर रचना का आनन्द ही नही लिया तब यदी वह एक शण भी जी पाया तो उसका जीवन सफल हो जाता है

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मनुष्य क्या करे ?

 

 
माना कि् भूमि पर अधिकार होना भी जरुरी है ताकि्  जीवन जी सके लेक्नि एक मानव को जीवन जीने हेतु कितनी भूमि चाहिये, मनुष्य को लालच नही जीवन का आनन्द लेना चाहिए हां यदी हम किसी क्रुर शासक से जनता को निजात दिलाने हेतु प्रयास कर रहे है तो हम उचित कर रहे है लेक्नि यदी यह स्वयं की लालच से किया जाये तो यह बुरा है
                

 
 
 
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                       अब मनुष्य क्या करे, हर मनुष्य का मन करता है कि् वह अपने को विराट कर ले अर्थात ऐसा हो जाये कि् हर जगह उसका नाम चले इसीलिए वह मान,सम्मान की लालच मे भूमि पर अधिकार पाने की कोशिश करता है परन्तु जब वह पा लेता है तो देखता है कि् उसके मरते ही अधिकार का हस्तांतरण हो जाता है इसीलिए मनुष्य को विराट पाने के लिए यह मार्ग नही अपनाना चाहिए यदी वास्तव मे मनुष्य को विराट पाना है तो उसे कोई ऐसा कार्य करना चाहिए कि् जिसमे जन कल्याण छुपा हो ताकि् उसके न रहने पर भी उसे स्मरण रखा जाये व वह एक ऐसा अधिकार प्राप्त कर ले जो कभी हस्तांतरित न हो, उदाहरण के लिए वाल्मिकी, महाकवि कालीदास, तुलसीदास जी यह सब ऐसे जिनका अधिकार हस्तांतरित नही हो सकता इसी प्रकार यदी जन ल्याण हेतु कोई अविष्कार करे, पुस्तक लिखे, जन कल्याण की भलाई का कार्य करे तो न केवल धरती पर बल्कि स्वर्ग तक हमारे कुल का नाम लिया जायेगा इसीलिए सदैव उचित भावना से कर्म करो व कर्म आनन्द ले कर करो न कि् बौझ समझ कर

                  धन्यवाद