आप सभी का हमारे ब्लॉग मे स्वागत है आज हम आपको वो ज्ञान देंगे जो जानते सब है परन्तु मानता कोई नही कुछ लोग खयाल मात्र समझते है तो कुछ जानते है कि् यह वास्तव मे है यह वो तथ्य है जो आज कि् वर्तमान दुनियां के साइंटिस्ट द्वारा व्यर्थ व नामुंकिन बताया जाता है लेक्नि हिमालय की गुफाओ के योगी न केवल वास्तव मे इसको मानते है बल्कि वह इसके चलते फिरते साक्ष्य भी है हम बात कर रहे है अमरता की, क्या है यह अमरता ? , क्या यह वास्तव मे हो सकता है या व्यर्थ की चर्चा है आज आपको इसका पूर्ण ज्ञान मिलेगा तो दोस्तो चलिये इसके बारे मे चर्चा करते है
अमरता
यह वह ज्ञान है जिसके बारे मे हमे वेदो आदि मे वर्णन मिलता है तथ्य चाहे जो भी कहे लेक्नि वास्तविक्ता तो यह है कि् अमर हुआ जा सकता है आपको हम अमरता का पूर्ण ज्ञान देंगे
अमरता का अर्थ
अमरता का अर्थ है अमर हो जाना अर्थात जो कभी मर नही सकता न कोई अस्त्र, न कोई शस्त्र, न कोई प्रहार , न कोई वार जिसे मार सके, जो हमेशा जिवित रहे व जो सदैव धरती पर विचरण करता रहे जो अमर होता है वो सदैव जवान रहता है कभी बूढा नही होता है हमेशा स्वस्थ रहने के साथ सदैव बलवान रहता है यह वास्तव मे अमर होने का अर्थ है लेक्नि अब कई लोग कहेंगे कि् अमरता का क्या इतिहास है तो उनके लिए भी उत्तर है
अमरता का इतिहास
हमारे सनातन धर्म मे कई असूरो, राक्षसो आदि का वर्ण है जो देवी या देवता की तपस्या कर उन्हे प्रसनन करने की कोशिश करते थे ताकि् उन्हे अमरता का वरदान मिल सके हमारे धर्म मे कई चिरंजीवियो का भी वर्णन है जो अमर है जो कभी मर नही सकते उदारण के तौर पर -
- परशुराम जी
- हनुमान जी
- विभिषण जी
- मार्कण्डेय
- राजा बलि
- व्यास
- कृपाचार्य
- आल्हा
- इंदल
यह वह जीव है जो मर नही सकते व जो अभी भी धरती पर विचरण कर रहे है इनको देवी या देवता द्धारा अमरता का वरदान मिला है यह वह तथ्य है जिनको नजरअंदाज नही किया जा सकता है
यह जीव अमर जीव कैसे बने ?
हमारे सनातन धर्म मे बताया गया है कि् यह जीव अमर कैसे हुए हम आपको सूक्ष्म रुप से वर्णन करेंगे
परशुराम जी
यह विष्णु भगवान के अवतार माने जाते है यह जन्म से ब्राहमण थे जन्म के पश्चात इन्होने महादेव से युद्व कला का ज्ञान प्राप्त किया महादेव ने इनसे प्रसन्न होकर इनको अमरता का वरदान दिया व साथ ही जीवन भर निरोग रहने का वरदान दिया कहते है इन्होने अकेले ही 21 बार धरती को क्षत्रीय विहिन कर दिया था इनको रामायण काल व महाभारत काल मे भी देखा गया जिसका वर्णन हमे धर्म ग्रंथो मे मिलता है
हनुमान जी
यह शिव जी के अवतार माने जाते है इनका जन्म रामायण काल मे हुआ था यह राम के परम भक्त थे व इनको चिरंजीवी होने का वरदान मिला था इन्होने राम जी के साथ मिल रावण सेना से युद्ध किया था व राक्षस राज का पतन किया व उन्हे मार्ग पर लाने मे अपनी भूमिका निभायी थी यह महाभारत काल मे व तुलसीदास जी के समय मे भी देखे गये थे इनका पूजन आज भी किया जाता है
विभिषण जी
यह रामायण काल के है यह लंकापति रावण के भाई थे रावण ने इनको लंका से निकाल दिया था व यह राम जी की शरण मे चले गये थे राम जी ने इन्हे अमरता का वरदान दिया यह महाभारत काल मे भी देखे गये
मार्कण्डेय जी
यह जन्म से ही अल्पायु थे जब इनकी मौत का समय आया तो इन्होने शिव का महाम्रत्युंजय मत्रं का पाठ किया जिससे प्रसन्न हो महादेव ने इनके प्राणो की रक्षा करी व अमरता का वरदान दिया तत्पश्चात इन्होने मार्कण्डेय पुराण की रचना करी
राजा बलि
यह एक राजा थे इनको अपने वर्चस्व पर धमंड था विष्णु जी ने ब्रहामण अवतार ले इनके दरबार मे जा तीन पग के नाप की भूमि का दान मागां, यह मान गये तत्पश्चात विष्णु अवतार ने विशाल रुप धारण कर लिया व दो पग मे ही तीनो लोक नाप ली, बलि जी ने भगवान से कहॉ आप अपना तीसरा कदम मेरे सर पर रख लिजिये इससे प्रसन्न हो विष्णु अवतार ने इन्हे अमरता का वरदान व पाताल लोक दान मे दे दिया
व्यास
यह वो है जो जन्म के साथ ही तेजवान थे इन्हे अमरता का वरदान प्राप्त है इन्होने महाभरत जैसी रचनाए करी है
कृपाचार्य
यह महाभारत काल के है यह कौरवो के कुल गुरु थे यह ज्ञानी थे व इन्हे अमरता का वरदान है
आल्हा व इंदल
यह महौबा निवासी महान यौद्वा थे इनकी कहानियां तो भारत मे हर कोई जानता है यह परमाल राजा के यहां थे आल्हा प्रधान सेनापति था व इंदल आल्हा का पुत्र, एक बार यह अपनी पुज्य देवी मां शारदा की पूजा करने गये यह देत्य का नाश करते हुए सिंहो से लड़ते हुए माता के मन्दिर गये व ना केवल गये बल्कि माता के मन्दिर के हेतु वनो को काटते हुए रास्ता भी बनाया जब यह मन्दिर पहुचे तो सभी राजाओ मे विवाद हो गया कि् पहले दर्शन कौन करेगा, जब आल्हा-उदल, मलखान, इंदल आदि शेरो व दैत्यो से लड़ रहे थे तो जो राजा छुप गये थे वह आ कहने लगे कि् दर्शन पहले हम करेंगे क्योकि् हम बड़े राजा है व तुम परमाल के सेवक मात्र, तब सभी ने अपनी तलवारे निकाल ली
तभी माता के मन्दिर के अन्दर से आवाज आयी कि् जो भी मेरे दर्षन पहले करेगा उसे अपने पुत्र की बलि मुझे देनी होगी तब सभी राजा पीछे हट गये लेक्नि तभी आल्हा ने पुत्र सहमती से माता को अपने पुत्र की बलि चढा दी पुत्र की गर्दन जैसे ही कटी व नीचे गिरने लगी माता ने गर्दन नीचे गिने से पहले ही प्रकट हो पकड़ ली व दोबारा शीश लगा आल्हा व इंदल को अमर कर दिया परन्तु जब उदल व मलखान की बारी आयी तो अमर करते समय जब माता माथे से लेकर पैर तक हाथ स्पर्श कर रही थी तो उदल ने अपने पाव हटा लिये व मलखे ने अपनी गर्दन धुमा ली जिसकारण उनके पाव व गर्दन् मे पदम बन गया व वह अमर नही हो पाये
जब पृथ्वीराज चौहान से उनका युद्ध हुआ तो पृथ्वीराज ने छल से उनके उसी अंग पर प्रहार कर वध कर दिया जब आल्हा को यह बात पता चली तो वह नंगी तलवारे ले युद्व मे कुद गया व सेना का नाश कर दिया तब पृथ्वीराज को वह मारने ही वाले थे कि् तभी उनके गुरु अमरा आ गये व उन्होने उसे प्राण दान मे देने को कहॉ व समझाया कि् यदी इसे मार दिया तो इस भूमि की रक्षा अन्य राजाओ से कौन करेगा तब आल्हा ने सन्यास ले लिया व तब से अभी तक आल्हा मेहर के शारदा मन्दिर मे रोज पूजा करने आते है व माता को एक फूल चढाते है
आम मनुष्य अमर कैसे बने ?
माना कि् आम इंसान अमर हो सकता है लेक्नि यह मार्ग अत्यन्त कठिन है इसके लिए योग व तप दोनो करने होते है परन्तु एक कठिनाई है कि् जो लोग अमर है या इसका ज्ञान रखते है वह कलयुग की बुराई बढने से अपने साथ इस ज्ञान को वनो या हिमालय की पहाड़ियो पर ले गये है यदी अमर होना है तो उसका मार्ग यह है कि् या तो हिमालय की पहाड़ियो पर जाये व सिद्व गुरु की खोज करे जो अमरता का ज्ञान दे सके या फिर नागा साघुओ, अधारियो के पास जाये वह भी अमरता का ज्ञान दे सकते है या फिर अपने आराघय के प्रति इतनी भक्ति करे की वह प्रसन्न हो आपके अमरता का ज्ञान दे इसके अन्य तरीके भी है
- अधोरियो से या नागा साधु से ज्ञान ले
- हमारे सनातन धर्म मे कई सिद्धियां है जो दुर्लभ व लगभग लुप्त है उसे साध ले
- योग से अपने पूर्ण शरीर पर काबू कर ले व अपने शरीर को अमर कर ले लेक्नि इसक हुतु कोई सिद्व गुरु ही मिल सकता है
यह ज्ञान था अमरता का यह मिथ्या नही बल्कि वास्तव था मुझे विश्वास है आपको यह लेख ज्ञान मे प्राप्ति करायेगा अन्त मे मै इतना ही कहुंगा कि् अमरता प्राप्त कि् जा सकती है परन्तु यह तभी समभव है जब आप मानवता की भालाई हेतु यह पाना चाहे न कि् सम्पूर्ण धरती पर अपने अनुचित राज्य हेतु
-; धन्यवाद
0 Comments