आपका हमारे ब्लॉग मे एक बार फिर से स्वागत है आज हम उस तथ्य पर बात करेंगे जो कि् सबके मन मे आता है व यह प्रश्न हर व्यक्ति के मन मे जरुर आता है कि् धर्म श्रेष्ट है या मानवता उदाहरण के तौर पर एक हिन्दु शिव जी को दूध चढाने जा रहा है व रास्ते मे एक भूखा भिक्षारी मिल जाता है तो अब उसे क्या करना चाहिए भूखे को दूध देना चाहिए या फिर शिव जी को दूध चढा देना चाहिए
सामान्य लोग सोचेंगे कि् एक तरफ मानवता भूखे को खाना खिलाना व दूसरी ओर धर्म है शिव को दूध चढाना तो ऐसे मे क्या किया जाये तो दोस्तो आज आपको जो ज्ञान मिलेगा उससे आपको स्वयं ही सबकुछ पता चल जायेगा तो दोस्तो आईये शुरु करते है
धर्म व मानवता मे श्रेष्ट कौन है
धर्म व मानवता मे श्रेष्ट कौन है इसको जानने के लिए आपको कुछ बातो का जानना आवश्यक है यदी मे आपको सीधे बताता हुँ तो आप समझ नही पायेंगे इसलिए पुरी बात सुने मुझे विश्वास है कि् इसके बाद फिर कभी जीवन मे आपके मन मे यह प्रश्न नही आयेगा और आप दुसरो को भी यह ज्ञान दे पायेंगे
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धर्म का अर्थ
धर्म सुनने मे जितना मधुर है उतना ही इसका अर्थ भी आनंदमय है धर्म का अर्थ यह मात्र नही होता कि् आप सनातन धर्म के है या , ईसाई धर्म के या अन्य किसी धर्म के बल्कि इसका तो अर्थ मात्र ही ऐसा है जो मानव को ज्ञानी बना दे,
धर्म का अर्थ है कि् हम ईश्वर के बताये पथ पर है की नही अर्थात ईश्वर ने जब मानव की रचना की तो साथ ही धर्म को भी बनाया ताकि् उसकी संताने कही मानवता त्याग राक्षस न बन जाये, धर्म वह है जो हमे सही मार्ग पर रखता है धर्म वो है जो हमे करुना, दया, सहायता ,निर्बल की रक्षा, नीति आदि का ज्ञान देता है यह वह नही कि् हम अपने धर्म की प्रति कटर हो जाये व सामाज मे किसी अन्य पक्ष को स्वयं के अनुरुप न होने पर दुख पहुचाये ,धर्म तो वह है जो मानव को एकता निर्बल रक्षा, मदद आदि का पाठ पढाता है यह वासतव मे धर्म का अर्थ है यदी हर कोई विश्व मे रहने वाले समस्त जीवो का कल्याण हित सोचे व कर्म करे तो यह धरती इतनी सुन्दर बन जायेगी कि् ईश्वर को अपनी इस दिव्य रचना मे मानव को खेलते देख प्रसनन्ता हो
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कहते है दुसरे कि् दि दुआ व दुसरे को दिया सुख, कही न कही हमें ही भविष्य मे लाभ देता है कभी आप यह कर के देखना कभी किसी अन्य धर्म के पक्ष को उसके किसी त्यौहार मे बाधाई दिजियेगा उसके इतनी प्रसन्नता हेगी जितनी उसे अपने किसी धर्म के मानव से सुन्ने मे नही हेगी वह अपने धर जा अपने बच्चो आदि से खुश होकर कहेगा कि् आज मुझे किसी अन्य धर्म के व्यक्ति ने बाधाई दी है हमारी इतनी सी बाधाई उसकी प्रसन्नता का कारण बनेगी
मानवता का अर्थ
मानवता अर्थात मानवीय गुणो का होना, हम कह सकते है कि् मानवता वह है जो शायद यदी न हो तो मानव,मानव नही कुछ और ही बन जायेगा
कुछ इतना बुरा कि् राक्षसो को भी पीछे छोड़ दे परन्तु मानवता की पहचान कैसे करी जाये ? यह भी प्रश्न आता है तो इसका उत्तर भी अत्यन्त आसान है मानवता वह है जो मानव को करना चाहिए अर्थात मानव को जब ईश्वर ने बनाया तो कुछ बाते निर्धारित करी कि् इसे करना क्या चाहिए वह ही मानवता है तो अब यह भी बात आती है कि् मानवता के कार्य को जाना कैसे जाये तो यह भी अत्यन्त आसान है ईश्वर ने हमे दो चीजे दी है दिल व दिमाग
दिल वह है जो मानवता को पहचानता है हमारे आस-पास कोई दुखी आदि होता है तो दिल तुरन्त पहचान लेता है कि् यहॉ मानवता दिखानी है यह हमे सूचित करता है
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दिमाग - यह वह है जो मानव को सदबुद्धि व सामाज मे कार्य करने का ज्ञान देता है यही वह है जिसने मानव को सभी पशुओ से श्रेष्ट बना दिया है श्रेष्ट भी दो तरह से बनाया है पहला ऐसे कि् मानव धरती पर मौजुद सभी जीवो से अधिक बुद्धिमान है व दुसरा ऐसे कि् मानव ही सामान्य तौर पर ऐसा जीव है जो दुसरे किसी जीव की करुना रुपी सहायता करता है हालाकि् कई जीवो मे भी यह देखा जाता है परन्तु ज्यादा तर मानव ही यह गुण रखता है
कमी - दिल की एक कमी है कि् यह कुछ ज्यादा ही दयावान हो जाता है व कई जगह छल का शिकार बन जाता है इसी प्रकार दिमाग मे भी कमी है यह है तो चतुर परन्तु कभी-कभी यह बुराई की ओर अग्रसर कर देता है
मेल - दिमाग व दिल का सन्तुलन यदी कर लिया जाये तो हम मदद मात्र ही नही बल्कि सामाज मे उचित परिवर्तण भी ला सकते है उदाहरण के तौर पर कोई मित्र हमसे आर्थिक सहायता लेने आया व वह निर्धन है तो दिल व दिमाग से सोचे आपके मन मे यही आयेगा कि् यदी इस काबिल है तो मदद कर दे परन्तु साथ ही साथ उसे कर्म व अराधना का ज्ञान दे उससे कहे कि् अपने ईष्ट का पूजन करो व साथ ही कर्म करो, कर्म अर्थात आप उसे आर्थिक क्रियाये करने का ज्ञान दे उसे बताये कि् वह कोई व्यापार करे छोटा ही सही या हो सके तो उसकी कही नौकरी लगवा दे, दिल व दिमाग का मेल यह होता है
संतुलन
अब तक आप सूक्ष्म रुप से समझ ही गये होंगे कि् धर्म व मानवता अलग नही बल्कि एक-दूसरे के पुर्ण कर्ता है मानवता का जनन धर्म से ही हुआ है अर्थात मानवता ईश्वर के धर्म से ही जन्मी है परन्तु आज के युग मे धर्म को एक विचित्र चीज बना दिया है लेक्नि ऐसा है नही हमारा धर्म मानवता को बनाये रखता है उदाहरण के तौर पर हम शिव जी को दुध चढाने जा रहे है व रास्ते मे एक भूखा मिल गया तो हम यह कर सकते है कि् उससे कहे कि् मै अपने अराधय को भोग लगा दु तत्पश्चात लौटते समय प्रसाद रुप मे यह दुध आके दे दुंगा
आप महादेव को जा उसमे से दुध निकाल चढा दे व तत्पश्चात आप हाथ जोड़ कर कह दे कि् हे महादेव मुझे राह मे एक भूखा मिला था व बचे दुध को आपका प्रसाद समझ मे उस भूखे देने जा रहा हुँ व दूध महादेव के चरणो से स्पर्श करा उस भूखे की भूख मिटा दे,
यह होता है धर्म व मानवता का सन्तुलन लेक्नि आजकल कोई समझ नही पाता हर कोई विवाद मे फंसा हुआ है जो कि् व्यर्थ है मानव को सदैव धर्म के पथ पर रहना चाहिए
मुझे विश्वास है कि् आपको हमारे इस ज्ञान से फायदा होगा व आगे चलकर आप भी ऐसे कर्म करेंगे कि् आपके कुल - जाति का हर जगह सकारात्मक नाम होगा
धन्यवाद
- आकाश सिंह राजपूत
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