SHRI DURGA DEVI
THOUGHT
BY - AKASH SINGH RAJPOOT
PEN NAME - SHRI DURGA DEVI
INDEX
1 पतझड़
2 मानव की वास्तिविक्ता
3 आत्मा की परिक्षा
4 मानव जीवन जीने का ढगं
पतझड़
Autumn
पतझड़ वो स्थिती है जिसमें पत्ते पेड़ से झड जाते है वो ऐसा समय होता है जब हरियाली के स्थान पर हमें हर जगह उजाड़ दिखता है मानो वह समय हर जगह उदासी छायी रहती है लोग अकसर सोचते है कि् मानव जीवन भी तो ऐसा ही है कभी हरियाली - कभी उजाड़, जो लोग यह सोचते या कहते है वह सही होते है
यदी देखा जाये तो मानव जीवन बड़ा विचित्र है हमारा जन्म होता है, हम बडे़ होते है कभी स्कूल तो कभी कार्यालय यह सब हमारे जीवन के चरणों में आने वाले स्थल हैं जहां मानव जाता है, वह जैसे - जैसे आगे बड़ता है वह देखता है कि् जीवन भी कितना अदभुद है यहां जन्म के साथ ही हमें कई बार जीना व मरना पड़ता है कभी कोई ऐसा दुख हमारे जीवन में आ जाता है कि् हम जीते हुए भी स्वयं को मरा हुआ समझते है तो कभी हमारे जीवन में इतनी खुशीयां आ जाती है कि् लगता है कि् मानो फिर से जन्म मिल गया हो
वास्तव में यह सब हमारे जीवन के चरण हैं जिनसे मानवो को गुजरना पड़ता है इसी बीच हमारे कई लक्ष्य होते है जिनको कही न कही हम ही चुनते है, जब बच्चा जन्म लेता हैं तो उसका कोई लक्ष्य नही होता हैं लेक्नि जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसके अन्दर कई ईच्छायें आ जाती है जिनको पूरा करने के लिए वह निरन्तर कर्म करने लगता है व धीरे-धीरे वह माया के जाल में फसता चला जाता है वह कभी सेच ही नही पाता कि् वास्तव में हम हैं कौन व यह कभी सोचता भी नही
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मानव की वास्तिविक्ता
मानव कभी यह नही सोच पाता कि् वास्तव में उसकी पहचान क्या है यदी किसी मानव सें पूछा जाये कि् आप कौन हैं ? तो वह उत्तर में अपना नाम, गौत्र आदि का वर्णन करेगा लेक्नि क्या सही में यह उचित पहचान हैं ?
कोई भी मनुष्य की वास्तिविक पहचान उसका नाम या कुल का परिचय नही होता, यह सब परिचय तो वह है जो उसे इस समाज सें मिला परन्तु वास्तव में उसकी क्या पहचान हैं, कोई भी सामान्य मानव अपनी वास्तिविक पहचान नही जानता अर्थात वह कहां से आया है उसके इस धरती पर जन्म लेने से पहले वह क्या था व इस धरती पर उसे किसने जन्म दिलवाया ? , क्या है मानव का लक्ष्य जिसके कारण उसे जन्म मिला व उसे कहां जाना है
यह ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर कोई नही जानता है पर ऐसा नही हैं इसका उत्तर जाना नही जा सकता है इसका सही उत्तर हैं कि् मानव तो शरीर मात्र हैं वास्तव में जीवन से भरी तो हमारी आत्मा हैं जो अजर हैं जिसे कोई नही मार सकता, आत्मा स्वयं परमात्मा का अंश है जिसे कोई मार नही सकता है इस आत्मा को ईश्वर ने अपने से अलग करके इस लोक में भेजा ताकि् उसकी परिक्षा ली जा सके व यदी वह आत्मा परिक्षा में उत्तीर्ण हो जाती है तो उसे ईश्वर स्वंय अपने पास बुला लेता हैं व अपने साथ ऐसे जहान में रखता हैं जहां कोई गम नही होता, कोई लालच नही होती
जहां हर समय आत्मा ईश्वर के साथ रह आनन्दमय स्थिति में रहती हैं अब आप प्रश्न करेगें कि् क्या होती हैं यह परिक्षा इसमें उत्तीर्ण कैसे हो ?
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आत्मा की परिक्षा
ईश्वर अपने से अलग कर आत्मा का निर्माण करते है तत्पश्चात वह सांसारिक दूनियां में उसे भेज दिया जाता है जहां वह कर्म करता है आत्मा को तेतीस करोड़ यूनियो का जीवन जीना पड़ता है तत्पश्चात उसे मानव जीवन मिलता है जहां इस बात का निर्णय होता हैं कि् आत्मा ईश्वर की परिक्षा में उत्तीर्ण हुई कि् अनउत्तीर्ण,
यदी आत्मा ने अच्छे कर्म किये तो उसे देवता का अगला जन्म मिलेगा व यदी उसने बुरे कर्म किये तो राक्षस का जीवन मिलता हैं व यदी ऐसे कार्य किये कि् जो न इतने अच्छे थे कि् देवता का जीवन मिले व इतने बुरे भी नही थे कि् राक्षस का जीवन मिले तो आत्मा को दोबारा मानव शरीर मे जन्म मिलता हैं परन्तु इन सबसे अलग भी कुछ हैं यदी कोई आत्मा अत्यन्त अच्छे कर्म करती हैं व वह काम, क्रोध, लोभ , मोह के बन्धन से आजाद हो जाये तो उसे ईश्वर अपने पास बुला लेता है तब आत्मा जा दोबारा ईश्वर से मिल जाती है व वह परिक्षा मे सफल हो जाती हैं परन्तु सबके मन में आता है कि् क्या है परिक्षा मे सफल होने का तरीका, मानव कैसे जीवन जीये ?
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मानव जीवन जीने का ढगं
मानव जब जन्म लेता है तो उसे इस जन्म का सही उपयोग करना चाहिये उसे सदा अच्छे कर्म करने चाहिये, उसे कर्म भी करना चाहिये चाहे वह आर्थिक कार्य हो या भलाई से जुड़े उसे दोनो प्रकार के कार्य करने चाहिये
मानव को धन कमा अपने परिवार को उचित जीवन तो प्रदान करना ही चाहिये परन्तु उसे कभी भी काम भावना, लोभ, ईर्ष्या आदि पर ध्यान नही लगाना चाहिये बल्कि उसे ईश्वर पर ध्यान लगाना चाहिये व उसकी ओर ध्यान लगा कर्म करना चाहिये
यदी मानव ने अच्छे कर्म किये व सही मार्ग पर रहकर भी धन कमाया परन्तु यदी उसने ईश्वर के प्रति प्रेम भाव नही रखा तो वह परिक्षा में उत्तीर्ण नही हो सकता हैं, यदी हम अच्छे कर्म कर भी रहे है पर ईश्वर के प्रति भक्ति का नही रख रहें है तो हम इस सांसारिक चीजो के मोह मे फसं जायेंगे व इन्ही से लगाव रखते रहेंगे तथा मौत होने के बाद भी हमारा मोह नही मिटेगा उस स्थिती में हम मरने के बाद भी इसी दूनियां मे जुड़े रहेंगे तब या तो हमारी आत्मा इस संसार में हमेशा रहेगी या आगे बढ जायेगी अर्थात दूसरे जन्म के लिए चली जायेगी, दोनो ही स्थिती में ही आत्मा दुख भोगेगी व उसे मोह नामक दोष दुख प्रदान करेगा
अब ऐसा कौन सा मार्ग हैं कि् हम ईश्वर की परिक्षा मे उत्तीर्ण हो जाये तो हम बता दें कि् इसके दो मार्ग हैं
प्रथम - मानव यदी दूनियां आदि का मोह त्याग कर किसी सिद्व गुरु के पास चले जाये तो वह गुरु उसे सांसारिक दूनियां से अलग कर उस परम ईश्वर से जा मिलायेगा व वो भी मानव जीवन में ही परन्तु एक सिद्व गुरु को ढूंढना कठिन हैं परन्तु नामुंकिन नही यदी हम हिमालय में जा ढूंढे तो हमें सिद्व योगी मिल सकते हैं
यदी आपको नही भी मिले व आप ईश्वर के प्रति भक्ति का भाव रख साधु बन जाये तो भी आप ईश्वर को पा सकते हैं परन्तु यह अत्यन्त कठिन हैं क्योकि् बिन गुरु शिक्षा कठिन हैं
द्वितीये - यदी मानव संसार में रह कर ही ईश्वर की भक्ति करे अर्थात वह रोज ईश्वर का मन्न करें व जिस धर्म का भी हैं उसके देवी-देवताओ की भी अराधना करें व सदैव अच्छे कर्म करे तब उसे ईश्वर का साथ मिल सकता हैं
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बस उसे एक बात का ध्यान रखना हैं वह आर्थिक या अनार्थिक कर्म तो करें परन्तु वह कर्म कुछ पाने की भावना से नही करें अर्थात जब भी वह कोई काम करें तो किसी चीज को पाने के लोभ सें न करें
यदी आप में न किसी चीज को पाने का लोभ हो, न खोने का गम व इन भावनाओ सें आप कर्म करें तो आपको सफलता तो मिलेगी ही लेक्नि इसका एक और लाभ होगा कि् आप बन्धन में नही फसेंगे अर्थात यदी आपको लक्ष्य प्राप्त नही हुआ तो आप दुख के बंधन मे नही फसेंगे व यदी सफलता मिल भी गयी तो भी आप मोह के बंधन में नही फसेंगे, तब आत्मा को किसी का बंधन नही रहता हैं व जब मानव जीवन में रहकर मानव इस भावना से कार्य करता है व ईश्वर की भक्ति मे लीन रहता हैं तो उसे अच्छा जीवन मिलता हैं तब मौत के बाद केवल आत्मा में ईश्वर का मोह रह जाता हैं व अन्तः वह ईश्वर से जा मिल जाती है व वह उत्तीर्ण हो जाती है
धन्यवाद
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