SHRI DURGA DEVI


THOUGHTS

 

 

 

 मित्रता








 

 

 

 

 

BY  -   AKASH SINGH RAJPOOT

 

PEN NAME   - SHRI DURGA DEBVI


 

 

 मित्रता





मित्रता, यह भी कितना अच्छा सम्बंध है न ? इसके अन्तर्गत दो जीव आपस में अत्यन्त धनिष्ट सम्बंध से बंध जाते है इस सम्बंध में यह अनिवार्य नही है कि् यदी दो या दो से अघिक मित्र है तो वह एक ही वंश या जाति से हो, मित्रता तो कभी भी किसी से भी हो जाती है परन्तु यह ऐसा सम्बंध है जो दिल से निभाया जाता है,

  


 

आज के युग में भले ही पुराने जमाने की तरह मित्रता देखने को कम मिलती हो लेक्नि आज भी दुनियां के किसी न किसी कोने में मित्रता जीवित है यदी हम देखे तो हमें पुराने इतिहास में कई उदाहरण देखने को मिल जायेंगे जिनमे से एक है कर्ण व दुर्योधन का, यह दोनो महाभारत काल के महाबलि यौद्धा थे ऐसा वर्णन हमें मिलता है कि् जब रंगभुमि में पाण्डवो द्वारा , राजा द्वारा, प्रजा द्वारा व अन्य  के द्वारा कर्ण का अपमान करा जा रहा था तो दुर्याधन ने आगे आ कर्ण को राजा धोषित कर दिया व उसे सम्मान से युद्व करने का अवसर दिया तब से उनमे इतनी धनिष्ट मित्रता हो गयी कि् कर्ण ने दुर्योधन का साथ कभी नही छोड़ा,

                  हमारे सनातन धर्म में वर्णन है कि् दुर्योधन बुरा था फिर भी कर्ण ने उसका साथ नही छोड़ा, जब वासुदेव कृष्ण ने कर्ण को समझाया कि् तुम्हारा मित्र गलत है व उसका साथ छोड़ दो व मेरे पक्ष में आ जाओ तो कर्ण ने जो निर्णय सुनाया वो ऐसा था कि् मानो उसने मित्रता को ही परिभाषित कर दिया हो, कर्ण ने कृष्ण जी जो कि् भगवान के अवतार माने जाते है उनका साथ त्याग दिया व दुर्योधन का साथ चुना क्योकि् अच्छा हो या बुरा हो वो उसका दोस्त था कर्ण सोचता था कि् वह अपने मित्र को सही मार्ग पर ला सकता है परन्तु कर्ण को यह मंजुर नही था कि् कर्ण, दुर्याधन का साथ ऐसे समय पर छोड़ दे कि् जब मृत्यु उसके समक्ष हो

                              कर्ण एक महान दोस्त था उसने मित्र के लिए अपने बल से पुरी दुनिया के राजाओ को पराजित कर उनके मुकुट दुर्योधन के चरणो में रख दिये तो यह थी इतिहास की मित्रता का एक उदाहरण आज के युग में हमें ज्यादा तर ऐसे लोग नही मिलते परन्तु कही न कही मित्रता अभी भी जीवित है आज में आपको एक ऐसी ही एक मित्रता की छोटी सी कहानी सुनाउंगा यह कहानी सच्ची है जो मेरे दादा जी श्री ज्वाला प्रसाद की है




SHORT STORY









 बात उन दिनो की है जब विज्ञान  मे मानव ने उच्च् श्रेणी प्राप्त नही की थी उस समय मेरे दादा जी व उनका मित्र बहुत अच्छे मित्र थे मै उनके मित्र का नाम तो नही जानता क्यो कि् उन्होने बताया था तो मै छोटा था व मुझे याद नही इसीलिए मै उनके मित्र का एक आभासी नाम रख रहा हुं वो  आभासी  नाम है वसाला है 

                          वह दोनो सदैव साथ में रहते थे चाहे वह कार्योलय हो या कोई अन्य स्थान हर समय वह साथ ही रहते थे वह रोज एक - दुसरे से मिलते थे परन्तु एक दिन मेरे दादा जी जब उससे मिलने गये तो उन्होने पाया कि् वह जमीन पर लेटा है व चारो ओरो से लोगो से धिरा है मेरे दादा भाग कर गये व उसको देखा, मेरे दादा ने देखा कि् वह अन्तिम सांसे गिन रहा है मेरे दादा जी उसके पास बैठे व दुखी मन से उसे देखने लगे वहां खडे़ लोगो ने कहॉ कि् पता नही क्या बात है इसके प्राण निकल ही नही रहे है तो मेरे दादा जी ने देखा तो उसकी एक छोटी सी बच्ची थी जो खड़ी हुई थी मेरे दादा जी समझ गये कि् वह क्यो नही यह दुनियां छोड़ कर जाना चाहता, मेरे दादा जी उसके कान के पास गये व कहॉ -


 

 

चिन्ता मत कर मै तेरी बच्ची का घ्यान रखुंगा अब तु निशचिन्त हो जा

 

उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी व वह निशचिन्त हो गया व मृत्यु को प्राप्त हो गया

                  शायद यह ही मित्रता होती है जिसमे विश्वास एक अहम भूमिका होती है आज जब मै यह कहानी लिख रहा हुं तो मेरे दिल में दुख व ऑखो मे ऐसे आंसु है जो न बाहर आ रहे है न अन्दर रह रहे है वह बस दुख दे रहे है शायद उस समय मेरे दादा जी को भी बहुत दुख हो रहा था परन्तु वह क्या कर सकते थे आज किनते वर्ष बि गये है इस बात को आज मै जब यह कहानी दुनियां के सामने ला रहा हुं तो इसका कारण यह है कि् यह बात समय के साथ भुलाई न जाये, मेरी यह कहानी सुनाने का कारण यह ही था कि् हम बता सके कि् दोस्ती एक अदभुद सम्बंध है मेरी सबसे अच्छी दोस्त मेरी अराधय देवी दुर्गा है उन्होने मुझे कभी धोखा नही दिया मै उनका पुजन करता हुं व वह मेरा सदैव ध्यान रखती है मै उनकी मौजुदगी को महसुस कर सकता हुं वो सदैव मेरा हित चाहती है

    हमारे आस-पास कई ऐसे लोग है जो मित्रता के लायक नही क्योकि् वह मतलबी है परन्तु कई ऐसे लोग अभी भी है जो मित्र बनाये जा सकते है तो मेरी इतनी ही राय है कि् जीवन एक ही बार मिलता है व उसे गवाये नही सदबुद्वि से अपने मित्र का चुनाव करे व सदैव उसका साथ दे यदी वह गलत मार्ग पर है तो उसे सही मार्ग पर ले आये, यदी वह बुरी स्थिती में है तो कभी उसका साथ् न त्यागे क्योकि् हो सकता हो यदी आप उसे त्याग दे तो वह कुछ ऐसा कर दे कि् आप फिर कभी उसे देख नही पाये 

    हमारा जीवन अत्यन्त कठिनाई से मिलता है अकसर हमारी दोस्ती में कुछ लड़ाईया हो जाती है ऐसे में आप सबसे पहले यह देखे कि् क्या आपको दोस्त दोस्ती के लायक है यदी है तो उसे माफ कर दिजिये क्यो कि् दोस्त कठिनाई से मिलते है


लेखक - आकाश सिंह राजपूत