SHRI DURGA DEVI STORIES
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BLESSINGS OF LORD HANUMAN
AUTHOR - AKASH SINGH RAJPOOT
BLESSINGS OF LORD HANUMAN
देहरादून मे कई किस्से कहानी जाने जाते है उन्ही मे से यह भी एक है देहरादून मे एक धने जंगलो से धिरा रास्ता था जो दोनो ओर गहरे जंगलो से धिरा था, वहां जाना मतलब मौत को अपना नाम देना है उस रास्ते पर एकान्त के अलावा ओर कोइ नही होता था वह रोड सीधी का अधंरे से भरी थी मानो वहां पर कोई नही था वहां यदी रात मे कोई जाता तो मारा जाता था कुछ लोग कहते थे कि् रात मे वहां डायने धुमती थी वह पेड़ो पर बैठ तो कई रास्ते के बगल मे बैठ उन राहगिरो का रास्ता रोकती थी जो वहां से आते थे वह रोड इस कदर तक खतरनाक थी कि् सरकार ने वहां नोटिस बोर्ड लगा दिया था
परन्तु रात मे अकसर वह नोटिस बोर्ड मानो लोगो की नजरो मे ही नही आता था न जाने वहां पर क्या था
देहरादून मे रहने वाली मालगी एक अच्छी लड़की थी उसके माता- पिता ने उसे शिक्षा के लिए देहरादून मे भेजा था वह मन लगा पढाई करती थी, वह इंजीनियरिंग कर रही थी व उज्जवल भविष्य चाहती थी
मालगी शर्मा, उसका नाम जितना सामान्य था वह भी उतनी ही सामान्य थी वह नित्य सुबह स्नान कर पूजा करती थी उसके अराघ्य राम भक्त हनुमान जी थे
मालगी, हनुमान जी अत्यन्त भक्ति करती थी वह दिन रात उनका नाम जपती थी एक दिन उसके स्कूल के साथीयो ने ट्रिप पर जाने का फैसला किया सभी खुश थे, उन्होने जालगी को भी मना लिया सब साथ मे देहरादून के मशहूर होटल मे जा स्वादिष्ट भोजन खाना चाहते थे उन पाँच दोस्तो मे अरास्य, विकिल, शिवानी ,जालगी व सहयाद्री थी वह पक्के दोस्त थे
विकिल - तो सब पक्का हो गया है सबसे पहले हम लो पिक्चर देखने चलेंगे फिर मशहूर होटल दिलबाग मे भोजन करेंगे
शिवानी - हां ठीक है तो बात पक्की
सहयाद्री - अरे ऐसे कैसे पक्की ?
वादा तो हुआ था दिलबाग जाने का
अरास्य - तो क्या हुआ यार, अब निकले ही है तो वहां भी हो ओंयेंगे
सहयाद्री - तुम लोग हमेशा ही यह करते हो
जालगी - चलो कोई नही सहयाद्री, मै भी हुं न
सहयाद्री - तुम कहती हो तो ठीक है
अरास्य - तो पक्का हम कल निकलेगें
सभी अगले दिन तैयार हो निकल जाते है वह कार से जा रहे होते है अरास्य कार चला रहा होता है
अरास्य - आज तो मै स्वाद भोजन करुंगा
सहयाद्री - हां यार मजा आयेगी
शिवानी - जालगी यह तुम्हारे हाथ मे क्या है ?
जालगी - यह हनुमान चालीसा है यह छोटी सी पुस्तक है इसका लोकेट डाल, मै गले मे पहनती हुं
सहयाद्री - यह साथ मे क्रू लायी हो
जालगी - मै इस लोकेट को कभी अपने से दूर नही करती हुं
अरास्य - चलो कोइ नही जालगी अच्छी बात है वैसे तुमने उस मनहूस रोड के बारे मे सूना है कहते है वहां डायनो का डेरा है
सहयाद्री - अरास्य कान खोल कर सून लो उस रोड से मत जाना यदी वहां गये तो कोइ नही बचेगा
अरास्य - चिन्ता मत करो मै नही जाउंगा
वह कार मे बैठ बातो मे खो जाते है व अंधेरा छाता जाता है , रात हो जाती है चारो ओर घुन्ध छा जाती है व उनके सामने दो रास्ते आते है एक पर नोटिस लगा होता है व एक पर नही, अरास्य वाहन रोक नोटिस पढता है व दूसरे मार्ग से वाहन लेजाने लगता है वह आगे चलते जाते है अचानक ठण्ड बढ जाती है व धुन्ध आ जाती है सर्दी इतनी बढ गयी थी कि् कार का कांच जमने लगात है व रोड पर अतन्त गहरा अंधेरा छा जाता है
अरास्य - यह हो क्या रहा है ?
सहयाद्री - अरास्य कही तुम डायन मार्ग पर तो नही ले आये ?
अरास्य - दिमाग खराब है क्या ?
शिवानी - मुझे कुछ सही नही लग रहा है
विकिल - हे भगवान बाहर देखो हम डायन मार्ग पर आ गये है
सब बाहर देखते है तो पेड़ो पर डायने बैठी थी व कुछ रोड के किनारे थी उनमे से कुछ अत्यन्त सुन्दर थी व कुछ भयानक थी वह रोड के किनारे बैठ रो रही थी उन्होने सफेद वस्त्र पहने थे व वह मांस खा रही थी
सहयाद्री - मूर्ख अरास्य यहां से जल्दी चलो
अरास्य - कहां चलू ? सामने देखो गहरा अंधेरा है
तभी अचानक सामने एक डायन आ जाती है वह अत्यन्त सुन्दर थी व उसकी चोटी लहरा रही थी
शिवानी - कुछ भी हो जाये रोकना नही
विकिल - आराम से
सहयाद्री - उड़ा दे कमीनी को
जैसे ही वाहन उससे टकराने वाला होता है वह अपनी चोटी से कार को टक्कर मारती है व कार पलट जाती है व पलटते - पलटते पेड़ से जा टकरा जाती है जालगी के सारे दोस्त निकल कार से बाहर गिर जाते है केवल जालगी कार के अन्दर रहती है उनके सर , हाथ व पैरो से खून निकलने लगतर है सब बेहोश हो जाते है
बहुत देर बाद जब जालगी को होश आता है तो वह पाती है कि् सब गायब थे न वहां डायने थी न ही कोई कोई साथी, वह धबरा गयी व बाहर निकली उसने स्वयं को देखा तो उसे एक खरोच भी नही आयी थी वह पाती है कि् वहां वह अकेली बचती है व चारो ओर दोस्तो को ढूंढती है परन्तु केवल नाउम्मीदी हाथ आती है तभी वह गहरे जंल मे डायनो की आवाज का पीछा करती है वह गहरे जंगल मे जाती है वहां उसे पेड़ो पर बैठी डायने दिखती है जो राक्षसी रुप मे थी व उसे देख गुस्सा कर रही थी परन्तु जालगी को अपने दोस्तो को खोजना था व आगे चलती जाती है लेक्नि न जाने क्यो वह डायने जालगी से दूर भाग रही थी
चलते - चलते वह एक गुफा के समीप चली जाती है जालवी पास रक्षी एक मशाल उठा गुफा मे प्रवेश करती है वह अन्दर पहुच पाती है कि् उसके दोस्त बंधे थे व डायने उन्हे धेरे मे रख तंत्र आदि कर रही थी वह काले रंग का धेरा था व वह किसी दुष्ट यंत्र जैसा था, सामने वह किसी को प्रसन्न करने हेतु मानो उनकी बलि देने वाली थी उनके सामने एक शैतान की मूर्त थी तभी एक समय आता है कि् वह शैतान के सामने चली जाती है व सर झुका प्रार्थना करने लगती है तत्पश्चात एक डायन उठ उन दोस्तो के समीप आती है
डायन - आज चार नही पाँच बलि दी जाती यदी वह लोकेट बीच मे न आता तो तुम मानवो की यही गलती हमें बल देती है दिखाउ क्या ?
डायन हाथ हिलाती है व हवा मे धुए से चक्र बन जाता है व उसमे दिखता है कि् जब कार गिरने के बाद सब बैहोश हो जाते है तो डायने उन्हे उठा लेती है लेक्नि जैसे ही जालगी के किट वह आती है तो जालगी का लोकेट चमकने लगता है व डायन जल जाती है व जालगी बच जाती है
डायन - तुम मानव जब भगवान से दूर हो जाते हो तो हमें जीवन मिलता है तुम्हारी मौत से अब मै बलि् दे अमर हो जाउंगी
सभी हसने लगती है
डायने उठ मूर्त के आगे झुक जाती है व आंखे बन्द कर लेती है जालगी वहां आ अपने दोस्तो के हाथ खोल उन्हे भगा लाती है वह सब गुफा से निकल वहान की ओर भागते है जैसे ही डायनो को पता चलता है कि् क्या हुआ वह शस्त्र उठा उनके पीछे भागती है वह ऐसा पल था जो अत्यन्त भयानक था पीदे भयानक डायने भाग रही थी व मार्ग अंधेरे मे डूबा था वह वहान के पास आ जाते है लेक्नि बहुत दूख की बात होती है कि् तब तक डायनो ने उन्हे धेर लिया था
डायन - मेरा भोग ले जायेगी शैतान की बलि ले जायेगी तो मै शैतान को क्या दूगीं
मै शैतान को तेरे दोस्तो के कटे सिर दूगीं
सभी डायने हसेने लगती है उसके सभी दोस्तो के सिर से खून निकल रहा था व कार टूट चूकी थी जालगी को कूछ भी नही सूझता है तभी उसको स्मरण आता है कि् कैसे हनुमाने जी ने उसकी मदद करी थी वह लोकेट को पकड़ हनुमान चालीसा पढना शुरु कर देती है उसकी ध्वनि तरगें डायनो को जला रही थी मानो उनके कान फट रहे हो जालगी जोर-जोर से उच्चारण प्रारम्भ कर देती है व सम्पन्न होते ही वह प्रार्थना करती है -
जालगी - हनुमाने जी मैने आपकी अपार भक्ति की है मुझे मोल दिजिये मेरे साथीयो के जीवन की रक्षा किजिये , रक्षा करें
जालगी जोर से चिल्लाती है व अचानक वहां विशाल रुप मे हनुमान जी प्रकट हो जाते है उनका विशाल रुप था व चमक रहे थे व वह चारो तरफ देखते है व पाते है कि् सभी ओर डायने थी
डायने तंत्र चलाती है
हनुमान जी - मूर्ख डायनो तुम पाप की राह पर हो आज मै तुम्हारा सर्वनाश कर दूगां
हनुमान जी अपनी दिव्य ऊर्जा का प्रहार करते है वह प्रहार डायनो के काले जादू व डायनो का संहार कर देता है न केवल उस स्थाने से बल्कि गूफा आदि हर जगह से डायनो के तंत्र व डायनो का सर्वनाश हो जाता है चारो ओर मानो जीवन खील जाता है
मारुती अपना दिवय अशीष रुपी प्रकाश पांचो दोस्तो पर डालते है व वह ठीक हो जाते है
सब उनके आगे झुकते है
हनुमान जी - बच्चो सदैव स्मरण रखना हर समय अपने ईष्ट को जरुर याद रखना तुम चाहे जिस भी मुसीबत मे हो उन्हे स्मरण रखना व सदैव भक्ति पथ पर रहना
जालगी - आप ने हमें दर्शन दे हमारे भाग खोल दिये
हनुमान जी - मेरा आर्शीवाद सदैव तुम सबके साा रहेगा तुम लोगो के कारण आज यहां से पाप का नाश हुआ है सदैव धर्म के पथ पर रहना
इतना कह वह अर्न्तध्यान हो जाते है व सब अपना शीष झुकाते है
सहयाद्री - जालगी आज तुमने हामरी जाने बचा ली
जालगी - मैने नही मेरे अराध्य ने
अरास्य - हमारे धाव ठीक हो गये लेक्नि हम धर कैसे जायेगें ?
विकिल - वहां देखो अरास्य तुम्हारी कार ठीक हो गयी
कार बिल्कुल ठीक हो गयी थी वह सब चैन की सांस लेते है तत्पश्चात वह कार उठा चले जाते है
उस दिन वह सब भी भक्ति पथ पर चलने लगे थे मानव को सदैव भक्ति पथ पर ही रहना चाहिये ताकि् वह स्वयं को बमूराईयो से बचाने के साथ - साथ दूसरो को भी बचा सके
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